अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बनाया 'कृत्रिम सूर्य', प्राकृतिक सूरज से '100 गुना ज्यादा ताकतवर'
चीन के बाद अब अमेरिका ने भी लैब में ‘कृत्रिम सूर्य’ बनाने का कारनामा किया है. कैलिफोर्निया के लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी की नेशनल इग्निशन फैसिलिटी में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहली बार एक न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया, जिसके परिणामस्वरूप शुद्ध ऊर्जा (Clean Energy) पैदा हुई. न्यूक्लियर फ्यूजन यानी परमाणु संलयन को अक्सर ‘कृत्रिम सूरज’ कहा जाता है.
चीन के बाद अब अमेरिका ने भी लैब में 'कृत्रिम सूर्य' बनाने का कारनामा किया है. कैलिफोर्निया के लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी की नेशनल इग्निशन फैसिलिटी में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहली बार एक न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया, जिसके परिणामस्वरूप शुद्ध ऊर्जा (Clean Energy) पैदा हुई. न्यूक्लियर फ्यूजन यानी परमाणु संलयन को अक्सर 'कृत्रिम सूरज' कहा जाता है. इस प्रयोग के नतीजे क्लीन एनर्जी का एक अनंत स्रोत हासिल करने की दशकों लंबी खोज में एक बड़ा कदम साबित हो सकते हैं और इसकी सफलता जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को खत्म करने में मदद कर सकती है. न्यूक्लियर फ्यूजन या परमाणु संलयन तब होता है, जब दो या दो से अधिक परमाणु एक बड़े परमाणु में जुड़ जाते हैं.
इस प्रक्रिया के दौरान हीट के रूप में बड़े पैमाने पर एनर्जी पैदा होती है. परमाणुओं के अलग होने की प्रक्रिया न्यूक्लियर फिजन या परमाणु विखंडन कहलाती है. इस प्रक्रिया के जरिए ही परमाणु रिएक्टरों से बिजली पैदा की जाती है, और बड़े पैमाने पर रेडियोएक्टिव कचरा पैदा होता है. लेकिन न्यूक्लियर फ्यूजन में ऐसा नहीं होता. न्यूट्रॉन और अल्फा कणों से पैदा ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में इकट्ठा किया जाता है और बाद में इससे ऊर्जा पैदा की जाती है. कुछ महीने पहले चीन ने न्यूक्लियर फ्यूजन की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की थी. हेफेई स्थित न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर से 1,056 सेकंड या करीब 17 मिनट तक 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा निकली थी. पिछले साल ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड मात्रा में निरंतर ऊर्जा पैदा करने में सफलता पाई थी, लेकिन यह सिर्फ 5 सेकेंड तक ही टिकी थी.
अमेरिका या फिर चीन जिस लैब-मेड-सूर्य की बात कर रहे हैं, वह असल में क्या है? प्राकृतिक सूर्य जिस प्रक्रिया के तहत एनर्जी पैदा करता है, उसी की नकल वैज्ञानिकों ने लैब में की है. कई बार वैज्ञानिकों को इस प्रयोग में विफलता मिली, क्योंकि न्यूक्लियर फ्यूजन चैंबर इतने तापमान को बर्दाश्त नहीं कर सका. चीन और अब अमेरिका ने इसमें सफलता पाई है. एक्सपर्ट मान रहे हैं कि न्यूक्लियर फ्यूजन से मिलने वाली एनर्जी, ऊर्जा के बाकी स्त्रोतों से ज्यादा क्लीन और एंवायरमेंट फ्रेंडली होगी. इससे हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर जीवाश्म ईंधन नहीं निकालेंगे. यानी पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और इंसान की ऊर्जा जरूरतें भी पूरी होंगी. लैब में बने सूर्य को ग्रीन एनर्जी का बड़ा स्त्रोत माना जा रहा है, जिससे दुनिया में गहराता ऊर्जा संकट कम हो सकेगा.
मिशिगन यूनिवर्सिटी में न्यूक्लियर इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के सहायक प्रोफेसर कैरोलिन कुरंज ने न्यूक्लीयर फ्यूजन की प्रक्रिया के बारे में बताया. नेशनल इग्निशन फैसिलिटी के रिसर्चर्स ने इस एक्सपेरिमेंट में गोल्ड (सोना) के कनस्तर में ट्रिटियम और ड्यूटेरियम के एक्स्ट्रा न्यूट्रॉन के संग हाइड्रोजन के 2 मॉलिक्यूल्स से बने फ्यूल के 1 मिमी पैलेट पर 192 बार लेजर दागा. इस प्रक्रिया को न्यूक्लीयर इग्नीशन कहते हैं, जिसमें सूर्य से 100 गुना ज्यादा गर्मी निकली. ये लेजर जब सोने के कनस्तर से टकराते हैं तो X-Rays पैदा होती हैं, जो फ्यूल पैलेट को 30 लाख डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान तक गर्म करती हैं. यह सूर्य की सतह से 100 गुना ज्यादा गर्मी होती है. अगर इन स्थितियों को लंबे वक्त तक बनाए रखा जाए तो फ्यूल फ्यूज हो जाएगा, और एनर्जी रिलीज होन जारी रहेगी.
वैज्ञानिकों का मत है कि एक समय आएगा जब प्राकृतिक सूरज की ऊर्जा पैदा करने की क्षमता क्षीण हो जाएगी. अनुमान के मुताबिक लगभग 5 बिलियन वर्ष (5 अरब वर्ष) बाद ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है. सूरज से निकलने वाली गर्मी एक तरह की ऊर्जा है, जो न्यूक्लियर फ्यूजन से पैदा होती है. सूरज दरअसल हीलियम और हाइड्रोजन जैसी गैसों से मिलकर बना है. इनमें विखंडन से बहुत ज्यादा ऊर्जा निकलती है, जिसका एक हिस्सा धरती पर भी पहुंचता है, जबकि कुछ हिस्सा अंतरिक्ष में ही बिखरकर रह जाता है. वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक 5 बिलियन वर्ष में प्राकृतिक सूरज के पास मौजूद हाइड्रोजन का भंडार खत्म होने लगेगा. इससे न्यूक्लीयर फ्यूजन की प्रक्रिया धीमी पड़ती जाएगी, यानी सूरज से निकलने वाली ऊर्जा कम हो जाएगी. इसके कारण सूरज और भी ज्यादा गर्म, ज्यादा विशाल होने लगेगा, जिसे रेड जायंट प्रोसेस कहा जा रहा है. हर खत्म होता तारा पहले इस स्टेज में पहुंचता है.
इसके कारण पृथ्वी का तापमान इतना बढ़ जाएगा कि समुद्र सूख जाएंगे. पेड़-पौधे खत्म होने लगेंगे. ठोस चीजें भी गलने और भाप बनने लगेंगी. धरती पर जीवन समाप्त हो जाएगा. सूरज का विस्तार इतना हो जाएगा कि आसपास के कई ग्रह, जैसे शुक्र और मंगल ग्रह भी उसके अंदर समा जाएंगे. इसके बाद एक चरण आएगा, जिसे वैज्ञानिक व्हाइट ड्वार्फ (White Dwarf) नाम देते हैं. इस प्रक्रिया में सूरज का तापमान ठंडा पड़ने लगेगा. उसके विस्तार की रफ्तार रुक जाएगी और बाहरी सतह पर लगातार विस्फोट होने लगेंगे, जो तब तक होते रहेंगे, जब तक कि सूरज की गर्मी पूरी तरह खत्म न हो जाए. हालांकि इसके बाद भी उसके अवशेष बचे रहेंगे, जिनसे गर्मी और जहरीली गैसें निकलती रहेंगी. उसे ठंडा होने में कम से कम 1 बिलियन वर्ष यानी 1 अरब साल लगेगा. इस तरह सूरज खत्म हो जाएगा. वैज्ञानिक इस संभावना से इनकार नहीं करते कि उपरोक्त प्रक्रिया के दौरान भी इंसान खुद को बचाने में सफल रहे. हालांकि, यह कैसे संभव हो पाएगा इस बारे में वैज्ञानिकों ने कोई तर्क या विचार प्रकट नहीं किया है.