Amazon वनों पर मंडरा रहा हैं विनाशकारी संकट, जानें कैसे पड़ेगा असर?
दक्षिण अमेरिका में 69 लाख स्क्वेयर किलोमीटर के क्षेत्र में फैले ऐमजॉन के वर्षावनों में 40 हजार से ज्यादा पौधों, 1300 पक्षियों और 430 स्तनधारी जीवों की प्रजातियां रहती हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| दक्षिण अमेरिका में 69 लाख स्क्वेयर किलोमीटर के क्षेत्र में फैले ऐमजॉन के वर्षावनों में 40 हजार से ज्यादा पौधों, 1300 पक्षियों और 430 स्तनधारी जीवों की प्रजातियां रहती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती की 6%-9% ऑक्सिजन यहीं से आती है। इससे साफ होता है कि इन वर्षावनों की अहमियत कितनी ज्यादा है। हालांकि, इसका 15-17 प्रतिशत हिस्सा इंसानी गतिविधियों की भेंट चढ़ चुका है और हालात फिलहाल सुधरते नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में यह सवाल है कि अगर 'धरती के ये फेफड़े' खत्म हो गए तो क्या होगा?
कैसे पड़ेगा असर?
ऐमजॉन को किसी भी खतरे से जनजीवों को भारी नुकसान होगा। ईकोसिस्टम में विशाल जानवरों से लेकर छोटे-छोटे कीड़े मकौड़े तक की बड़ी भूमिका होती है। किसी छोटे कीड़े पर खतरा मंडराने से उस पर निर्भर बड़ी जीव के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो सकता है। इसी तरह पूरी Food chain चरमरा सकती है और जैव विविधता को भारी नुकसान हो सकता है। ऑकलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलजी के सेबैस्टियन लूजिंगर का कहना है कि एक भी प्रजाति खत्म हुई तो वह हमेशा के लिए खो जाएगी और इससे ऐमजॉन को काटने का सबसे बड़ा नुकसान होगा। उसकी पानी और कार्बन के स्टोरेज में भूमिका पर असर पड़ेगा और वहां रह रहे 3 करोड़ लोग तो प्रभावित होंगे ही।...तो होगा विनाशकारी परिणाम
खाना और घर उपलब्ध कराने वाले ईकोसिस्टम के खत्म होने से जो नुकसान होगा उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लूजिंगर का कहना है कि इसके नतीजे वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था और सामाजिक भी होंगे। ऐमजॉन में 76 अरब टन कार्बन स्टोर होता है और अगर सभी पेड़ काट दिए जाएं तो वह पूरा कार्बन वायुमंडल में रिलीज हो जाएगा। यह सालाना इंसानी गतिविधियों से उत्सर्जित कार्बन की तुलना में 8 गुना ज्यादा होगा। जाहिर है इससे जलवायु पर विनाशकारी परिणाम होंगे।
नहीं होगा कोई इलाज
इसके अलावा ऐमजॉन पानी के भारी स्टोरेज और रीसर्कुलेशन के लिए भी जिम्मेदार है। लूजिंगर का कहना है कि ऐमजॉन का क्लाउड सिस्टम और उसकी पानी रीसाइकल करने की क्षमता में विघ्न पड़ा तो ईकोसिस्टम बिगड़ जाएगा और ये वर्षावन सूखे सवाना में तब्दील हो जाएंगे। ये बदलाव महज 20-40 प्रतिशत पेड़ कटने पर ही नजर आने लग सकते हैं। लूजिंगर का यह बी कहना है कि कहीं और ये पेड़ लगाना यूं तो मुमकिन है लेकिन इसके लिए सैकड़ों साल लग जाएंगे और इतना विशाल क्षेत्र भी उपबल्ध नहीं है। पानी का सर्कुलेशन पेड़ों के काटने से रोका जाता है तो वापस नहीं आया जा सकता। जंगलों से पानी खत्म होने के नतीजे वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर दिखेंगे।