मंगल ग्रह की सतह पर उगे मशरूम. हैरानी हो रही है कि लाल ग्रह की सतह पर जहां जीवन के लायक वायुमंडल नहीं है, वहां पर मशरूम कैसे उग गए? अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर ऑपरच्यूनिटी ने अपने कैमरे से इन मार्स मशरूम्स (Mars Mushrooms) की तस्वीर ली है. ये तस्वीरें आज की नहीं है. तस्वीर साल 2004 की है लेकिन हाल ही में हुई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि यह मशरूम जैसे दिखने वाले हैमेटाइट कॉनक्रिशन (Haematite Concretions) हैं. हैमेटाइट लोहे और ऑक्सीजन के मिलने से बनता है.
ये हैमेटाइट कॉनक्रिशन गोलाकार होते हैं. जिनमें हैमेटाइट मिनरल भरा होता है. इस धातु का उपयोग धरती पर भी होता है. ये गोलाकार हैमेटाइट कॉनक्रिशन काफी लंबे में समय में जमा हुए हैं. जब मंगल की सतह पर गर्मी बढ़ती है और सतह की नमी भाप बनकर उड़ती है तभी लोहे का यह अवयव उस नमी को पकड़ता है. फिर हवा के साथ गोले जैसा हो जाता है. हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह किसी ज्वालामुखीय गतिविधि की वजह से भी हो सकता है.
कायदे से ये मशरूम तो हैं नहीं. जिस जगह पर साल 2004 में ऑपरच्यूनिटी रोवर ने लैंड किया वहां पर चारों तरफ ये भारी मात्रा में मौजूद थे. मंगल ग्रह की सतह खोदी गई तो उसमें से भी ये गोलाकार आकृतियां बाहर आई थीं. ऐसा नहीं है कि मंगल ग्रह पर इन गोलाकार आकृतियों को एलियन (Alien) जीवन से जोड़ा गया है. इससे पहले 7 अगस्त 1996 में अमेरिका तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन (US President Bill Clinton) ने व्हाइट हाउस में कहा था हमारे वैज्ञानिकों ने 1984 में अंटार्कटिका से उल्कापिंड जमा किया था. जिसके अंदर प्राचीन जीवाश्मीकृत कीड़े मौजूद थे.
बिल क्लिंटन ने दावा किया था ये माइक्रोऑर्गेनिज्म हैं. यानी सूक्ष्म जीव हैं. इस उल्कापिंड का नाम है ALH 84001. यह पत्थर भी मंगल ग्रह से धरती पर आया था. ये मंगल ग्रह पर ज्वालामुखी फटने की वजह से या फिर किसी एस्टेरॉयड के टकराने के बाद हुआ धमाके से उड़कर धरती की ओर आया होगा. धरती पर आने से पहले उसने अंतरिक्ष में लाखों सालों की यात्रा भी होगी. इसके बाद जाकर धरती के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित अंटार्कटिका में आकर गिरा होगा.
जब वैज्ञानिकों ने ताकतवर माइक्रोस्कोप से इन सूक्ष्म जीवों का अध्ययन किया तो पता चला कि अब ये जीवाश्म बन चुके हैं. ये करोड़ों साल पुराने हैं. हालांकि इनकी सही उत्पत्ति की जगह और समय का पता नहीं चल पाया. आज भी कई साइंटिस्ट इन्हें लेकर विवाद करते रहते हैं. साथ ही अपनी-अपनी थ्योरी देते रहते हैं. कई वैज्ञानिकों का दावा है कि अक्सर अकार्बनिक प्रक्रियाएं ऐसी स्थिति बनाती हैं, जिससे लगता है कि आसपास कई जैविक या कार्बनिक आकृतियां बन गई हैं. इसका मतलब ये है कि अगर कोई चीज जीवित या जीवों जैसी दिखती है, तो जरूरी नहीं कि वो जीवन का संकेत हो.
साल 1970 में नासा के वाइकिंग रोबोटिक लैंडर (Viking Robotic Lander) ने मंगल ग्रह पर कई प्रयोग किए. उसने जमीन की सतह की जांच की ताकि यह पता चल सके कि वहां पर सूक्ष्म जीव हैं या नहीं. मंगल की मिट्टी पर रसायन डाले गए. ये रोबोटिक लैंडर खुद कर रहा था. एक सैंपल में रोबोट ने मंगल की मिट्टी पर रेडियोएक्टिव कार्बन-14 को मिलाया. इसके पीछे वजह ये है कि अगर कोई विकसित होता हुआ जीवन है या माइक्रोब्स हैं तो वो इसे सोख लेंगे. बाद में धीरे-धीरे कार्बन-14 हवा में गायब हो जाएगा. लेकिन वाइकिंग के जिस चेंबर में यह प्रोसेस चल रहा था वहां पर गर्मी बढ़ती जा रही थी.
वैज्ञानिकों को लगा कि इतनी गर्मी बढ़ेगी तो माइक्रोब्स मारे जाएंगे. लेकिन यहां अजीब ही हुआ. चैंबर के अंदर कार्बन-14 की मात्रा मंगल की मिट्टी से रिएक्ट करने के बाद बढ़ने लगी. जबकि उसे खत्म होना चाहिए था. आखिरकार गर्मी इतनी बढ़ गई कि चेंबर के अंदर पानी उबलने से ज्यादा तापमान बन गया. हालांकि इस प्रयोग का कोई परिणाम सामने नहीं आया. लेकिन रेडियोएक्टिव कार्बन-14 को ऐसे वातावरण में खत्म होना चाहिए था, जो बढ़ता चला गया वह अधिक तापमान के साथ. (फोटोःNASA)
हाल ही में मंगल ग्रह पर छोटी मात्रा में मीथेन गैस मिली थी. यह गैस बताती है कि वहां पर सूक्ष्मजीव हैं. क्योंकि धरती पर रहने वाले सूक्ष्मजीव मीथेन गैस निकालते हैं. लेकिन इस बात से भी यह नहीं पता चलता कि मंगल पर जीवन है या नहीं. क्योंकि कई अकार्बनिक प्रक्रियाओं की वजह से भी मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है. यहां तक कि पत्थर ज्यादा गर्म होते हैं तो भी मीथेन गैस निकलती हैं.
1977 में अमेरिका के बिग ईयर रेडियो टेलिस्कोप ने एक अजीबो-गरीब रेडियो सिग्नल को पकड़ा. यह सिग्नल कुछ ही मिनटों के लिए था. लेकिन बहुत ताकतवर और इसकी फ्रिक्वेंसी रेंज बेहद पतली थी. वैसा सिग्नल आजतक फिर नहीं पकड़ा गया. उस समय जो एस्ट्रोनॉमर रेडियो टेलिस्कोप पर काम कर रहे थे. उन्होंने सिग्नल के प्रिंटआउट पर लाल पेन से गोला बनाया और लिखा WOW!. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि वो सिग्नल धरती के बगल से निकल रहे धूमकेतु से आया होगा. या फिर किसी सैटेलाइट का होगा. लेकिन आजतक उस सिग्नल की उत्पत्ति का पता नहीं चला.
मंगल ग्रह से लेकर अंटार्कटिका तक. UFO से लेकर एलियन को देखने तक की कई कहानियां ऐसी हैं जिनके पीछे का रहस्य आजतक खुल नहीं पाया है. हाल ही पूर्व अमेरिकी राष्ट्पति बराक ओबामा ने कहा एलियन होते हैं. उनको देखा गया है. लेकिन मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं इसे लेकर लगातार बहस चल रही है. होनी भी चाहिए...क्योंकि नासा एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स के साथ मिलकर मंगल पर इंसान को भेजने की तैयारी जो कर रहा है.