सूर्य से भी 100 गुना बड़ा तारा, तारे में विस्फोट की अदभुत तस्वीर, वैज्ञानिक भी हैरान
ब्रह्मांड की रोचक दुनिया में हर रोज कुछ न कुछ नया घटता रहता है. ऑस्ट्रेलिया के एक एस्ट्रोनॉमर्स ने पहली बार ऐसी तस्वीर ली है
Space Latest News: ब्रह्मांड की रोचक दुनिया में हर रोज कुछ न कुछ नया घटता रहता है. ऑस्ट्रेलिया के एक एस्ट्रोनॉमर्स ने पहली बार ऐसी तस्वीर ली है, जिसे देखकर अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी दंग हैं. इससे पहले कभी भी किसी विशाल तारे में होने वाले धमाके को कैमरे में कैद नहीं किया गया था. वो भी वह तारा, जो सूर्य से भी 100 गुना ज्यादा बड़ा है.
ऑस्ट्रेलिया के एस्ट्रोनॉमर्स ने ऐतिहासिक लम्हे की तस्वीर दुनिया के सामने पेश की है. इस सुपरनोवा तस्वीर में रोशनी का एक जोरदार धमाका साफ देखा जा सकता है और तारे में धमाका होने से पहले उसमें से निकलने वाली तरंगे भी दिख रही हैं. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (ANU) के एस्ट्रोनॉमर पैट्रिक आर्मस्ट्रॉन्ग का कहना है कि इस घटना को शॉक कूलिंग कर्व कहते हैं. इससे हमें यह समझने में भी आसानी होगी कि किसी तरह के तारे में विस्फोट होता है.
पहली बार मिली इतनी जानकारी
पैट्रिक आर्मस्ट्रॉन्ग का कहना है कि यह पहली बार है जब किसी ने शॉक कूलिंग कर्व की इतनी विस्तृत जानकारी मुहैया कराई है. हमारी दिलचस्पी इस बात को जानने में ज्यादा है कि धमाके से पहले रोशनी की चमक अचानक से कैसे बदल जाती है. ANU की टीम नासा के केप्लर स्पेस टेलीस्कोप (NASA Kepler Space Telescope) का इस्तेमाल करते हुए यह विशाल खोज की है. आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा, 'शुरुआती स्तर में सुपरनोवा बहुत तेजी से होता है. दुनिया के अधिकतर टेलीस्कोप से इसे रिकॉर्ड कर पाना बहुत ही मुश्किल है.'
नए मॉडल से तारे को पहचानने में मिलेगी मदद
ANU ने इस तस्वीर के साथ जो मॉडल तैयार किया है, उससे ऐसे विस्फोट होने वाले तारे को पहचानने में मदद मिली, जिससे सुपरनोवा बनता है. उनका मानना है कि यह बहुत हद तक दुर्लभ पीला सुपरजाइंट हो सकता है. इस नए मॉडल का नाम SW 17 रखा गया है. डेलीमेल की खबर के अनुसार एस्ट्रोफिजिक्स ब्रैड टकर ने कहा कि इस नए मॉडल से ऐसे अन्य तारों को पहचानने में मदद मिलेगी, जो सुपरनोवा बनते हैं.
क्या है सुपरनोवा
नासा के मुताबिक सुपरनोवा अब तक का सबसे विशाल धमाका है, जो इंसानों ने देखा है. प्रत्येक ब्लास्ट बहुत ही ज्यादा रोशनी वाला और बहुत ज्यादा तेज विस्फोट होता है. यह बहुत ही अहम है क्योंकि माना जाता है कि ब्रह्मांड में मिलने वाले अधिकतर तत्व इसी से बनते हैं. शोधकर्ता सुपरनोवास को इसलिए समझना चाहते हैं क्योंकि इससे यह पता चल सकत है कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई थी. एएनयू के एस्ट्रोनॉमर्स और शोधकर्ताओं की इंटरनेशनल टीम ने जिस तस्वीर का इस्तेमाल किया, उसे 2017 में केप्लर टेलीस्कोप से लिया गया था. बाद में इसकी सेवा रोक दी गई थी.