इजरायल में मिली हजारों साल पुरानी कंघी से सामने आया 3700 साल पुराना चौंकाने वाला रहस्‍य

इजरायल और अमेरिका के पुरातत्‍वविदों की एक टीम को दक्षिणी इजरायल में हाथी दांत की बनी एक कंघी मिली है। यह कंघी 3700 साल पुरानी है और इस पर कनानी लिपि में एक वाक्‍य लिखा है।

Update: 2022-11-10 05:10 GMT

इजरायल और अमेरिका के पुरातत्‍वविदों की एक टीम को दक्षिणी इजरायल में हाथी दांत की बनी एक कंघी मिली है। यह कंघी 3700 साल पुरानी है और इस पर कनानी लिपि में एक वाक्‍य लिखा है। बताया जा रहा है कि यह कैनिनिट या कनानी भाषा के रहस्‍य को बयां करता है। इस कंघी पर इस भाषा में पूरा एक वाक्‍य लिखा हुआ है। कंघी पर लिखा है कि लोगों को जूं से छुटकारा पाने के लिए अपने बालों और दाढ़ी में कंघी करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। इस वाक्य में 17 अक्षर हैं जिनमें कहा गया है कि यह बालों और दाढ़ी की जूं को जड़ से खत्म कर सकता है।

1800 साल पहले आविष्‍कार

विशेषज्ञों का कहना है कि इस खोज से कनानी वर्णमाला के शुरुआती प्रयोग के बारे में नयी जानकारी मिलती है जिसका आविष्कार ईसा पूर्व 1800 साल के आसपास हुआ था। उसके बाद हिब्रू, अरबी, यूनानी, लैटिन आदि वर्णमाला प्रणालियों की नींव पड़ी थी। कंघी पर लिखे वाक्य से पता लगता है कि उस समय लोगों को जूं से परेशानी थी। पुरातत्वविदों का कहना है कि उन्हें कंघी पर जूं होने के सूक्ष्म सबूत भी मिले हैं। यह कंघी साल 2016 में दक्षिणी इजरायल में खुदाई के दौरान मिली थी।

पिछले साल इजरायल की हिब्रू यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने इस पर खुदे हुए छोटे शब्दों को देखा। इस खोज के बारे में बुधवार को यरूशलम जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी में एक विस्‍तृत आर्टिकल प्रकाशित हुआ है। इस पूरी खोज में हिब्रू यूनिवर्सिटी के अलावा अमेरिका की एडवेनस्टि यूनिवर्सिटी की टीम भी शामिल थी। यह लिपि काफी हल्‍की थी इस वजह से इसका पता नहीं लग सका। साल 2022 में पोस्‍ट प्रोसेसिंग के दौरान इस पर सबकी नजरें गईं।

पहली बार मिला कोई वाक्‍य

हिब्रू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर योसेफ गारफिंकेल का कहना है कि पहली बार है जब कनानी भाषा में कोई वाक्‍य इजरायल में मिला है। सीरिया के गारिट में कनानी लोग हैं, लेकिन वे एक अलग लिपि में लिखते हैं, न कि उस वर्णमाला में जो आज चलन में है। कनानी शहरों का जिक्र मिस्र के दस्तावेजों, अक्कादियन में लिखे गए अमरना चिट्ठियों और हिब्रू बाइबिल में किया गया है। कंघी शिलालेख लगभग 3700 साल पहले रोजमर्रा के कामों में वर्णमाला के प्रयोग का जीता-जागता सबूत है। प्रोफेसर गारफिंकेल की मानें तो यह मानव की लिखने की क्षमता के इतिहास में एक मील का पत्थर है।

नष्‍ट हो गया कंघी का हिस्‍सा

यरूशलम जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी में टीम ने अपने रिजल्‍ट्स को पब्लिश किया है। पुरातत्‍वविदों की टीम ने कंघी को छोटा बताया है जो साइज में 3.5 बाई 2.5 सेमी है। उन्‍होंने बताया कि कंघी दोनों तरफ दांत हैं और कंघी का बेस नजर नहीं आ रहा है। लेकिन माना जा रहा है कि कंघी के दांत बहुत पहले ही टूट गए थे। कंघी के बीच का हिस्‍सा नष्‍ट हो गया है। माना जा रहा है कि बालों की देखभाल के दौरान कंघी को पकड़ने वाली उंगलियों के दबाव से या बालों या दाढ़ी से जूं हटाने में यह हिस्‍सा खत्‍म हो गया होगा।

अमीर लोगों करते थे प्रयोग

छह मोटे दांतों वाली कंघे के एक तरफ का इस्तेमाल बालों में गांठों को खोलने के लिए किया जाता था, जबकि दूसरी तरफ 14 महीन दांतों वाले जूं और उनके अंडों को हटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह बिल्‍कुल उसी तरह से थी जैसे आजकल दुकानों में जूं खत्‍म करने वाली कंघी बिकती है। हाथी दांत उस समय एक बहुत महंगा था। ऐसे में यह कंघी निश्चित तौर पर विलासिता की वस्‍तु मानी जाती थी। उस अवधि में कनान में हाथी नहीं थे और हो सकता है कि यह कंघी मिस्र से आई हो। लेकिन इस कंघी से यह साफ पता चलता है कि उस समय हाई सोसायटी के लोग भी जुंओं से पीड़‍ित थे।


व्रेदित : navbharattimes.

Tags:    

Similar News

-->