सूरज से 1.5 अरब Km दूरी, -180 °C तापमान, फिर भी इस चांद पर जीवन की खोज क्यों?
चांद पर जीवन की खोज क्यों?
शताक्षी अस्थाना: मंगल पर जीवन की तलाश में भारत समेत दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। मंगल पर रात को तापमान -90 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। अब इसे दोगुना कर दें, यानी -180 डिग्री सेल्सियस, उतना तापमान होता है शनि के चांद टाइटन (Titan) का। फिर भी अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के Glenn Research Center की Compass Lab में वैज्ञानिक यहां जीवन की खोज में लगे हैं। हाल ही में NASA ने Glenn को 90 करोड़ रुपये का ग्रांट भी दिया है।
1. टाइटन पर जीवन मिलने की उम्मीद क्यों है?
अभी हमें सिर्फ धरती के बारे में विश्वास से पता है कि यहां जीवन है, इसलिए और कहां जीवन हो सकता है, यह हमें नहीं पता। हालांकि, हमें यह पता है कि जीवन कॉम्पलेक्स ऑर्गैनिक मॉलिक्यूल्स से बना है। यह ऐसी चीज है जो हमें टाइटन पर भारी पर्याप्त मात्रा में मिलती है, जटिल केमिकल्स 'Tholin' के रूप में, जिनके बारे में हमें ज्यादा नहीं पता है। Tholin वैसे तो जीवन को जैसे हम जानते हैं, उससे ज्यादा टार की तरह लगते हैं लेकिन वे जीवन की शुरुआत के लिए जरूरी ऑर्गैनिक मॉलिक्यूल हो सकते हैं। इस बारे में ज्यादा जानने के लिए हम टाइटन की सतह की केमिस्ट्री को ज्यादा समझना चाहते हैं और अगर हो सके तो धरती पर सैंपल अनैलेसिस के लिए लाना चाहते हैं।
2. क्या टाइटन के कोई फीचर, केमिकल या फिजिकल, प्राचीन या आज की धरती जैसे दिखते हैं?
सौर मंडल में टाइटन अकेला ऐसा चांद है जिसमें एक मोटा वायुमंडल है और अकेली ऐसी बॉडी (ग्रह या चांद) है जिसकी सतह पर तरल के स्रोत दिखते हैं। टाइटन पर तरल हाइड्रोकार्बन्स हैं- मीथेन और ईथेन लेकिन फिर भी यह झीलों, बादलों और मौसम में धरती की तरह है, भले ही मौसम में मीथेन की बारिश होती हो।
3. मंगल या चांद की तुलना में टाइटन या शनि के लिए मिशन और उपकरण डिजाइन करना कितना अलग है?
टाइटन चांद या मंगल से बहुत अलग है क्योंकि इसका वायुमंडल बहुत मोटा है, धरती से ज्यादा घना। यह बेहद ठंडा भी है, यहां औसतन तापमान -180 डिग्री सेल्सियस है। इसका मतलब है कि हर चीज जो हम डिजाइन करें वह धरती या मंगल के तापमान से कहीं नीचे ऑपरेट करने के लायक हो (जैसे चांद पर आधीरात का तापमान)।
4. इस दिशा में ठोस नतीजे मिलने में क्या रुकावटें हो सकती हैं?
टाइटन से सैंपल लेकर आना बहुत ही मुश्किल प्रॉजेक्ट है। सबसे बड़ी दिक्कत है कि टाइटन बहुत दूर है। सूरज से 1.5 अरब किलोमीटर और मंगल की तुलना में 6 गुना ज्यादा दूर है। इससे टाइटन पर जाना और ऑपरेट करना बहुत मुश्किल हो जाता है और टाइटन से धरती पर सैंपल वापस भेजने के लिए बहुत ज्यादा ईंधन की जरूरत होगी। इसलिए हम टाइटन पर अपना ईंधन बनाना चाहते हैं, बजाय इसके कि धरती से लेकर जाएं।
5. क्या हमारे पास टाइटन पर ईंधन बनाने की टेक्नॉलजी है? और क्या इमेजिंग और एक्सपेरिमेंट करने की टेक्नॉलजी है?
हमारे पास ईंधन बनाने के कुछ प्रस्तावित तरीके हैं जो हमारे हिसाब से टाइटन के संसाधनों का इस्तेमाल करके हो सकते हैं। अभी इस बारे में स्टडी करके नतीजों को देखना है कि यह कितना काम करता है। इमेजिंग और टेक्नॉलजी लेकर जाना साल 2026 में Dragonfly मिशन पर देखा जाएगा। इससे हमें टाइटन की सतह के बारे में ज्यादा जानकारी मिलेगी जो हम मिशन प्लानिंग के लिए इस्तेमाल करेंगे।