मंगला गौरी के पूजा से प्राप्त होता है संतान सुख

हिंदी पंचांग के अनुसार सावन मास चल रहा है। कल सावन का चौथा और आखिरी मंगलवार है। इस दिन माता मंगला गौरी की पूजा की जाती है

Update: 2021-08-17 07:55 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |    हिंदी पंचांग के अनुसार सावन मास चल रहा है। कल सावन का चौथा और आखिरी मंगलवार है। इस दिन माता मंगला गौरी की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन में माता पार्वती और भगवान शिव स्वयं धरती पर भ्रमण करते हैं। इसीलिए पवित्र मास के प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की और मंगलवार को माता गौरी की पूजा की जाती है। इस दिन सुहागन महिलाएं मां गौरी को प्रसन्न करने के लिए व्रत का विधि विधान से पालन करती हैं और अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। आइये विस्तार से जानते हैं इस व्रत से जुड़ी कथा के विषय में।

मंगला गौरी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक नगर में एक सेठ धर्मपाल रहता था। सेठ अपने दयालुता के लिए चर्चित था। ईश्वर की कृपा से सेठ और सेठानी एक सुखी जीवन बीता रहे थे। परंतु उनको निसंतान होने का एक दुख था जो सभी सुखों पर भारी था। इसी वजह से पति-पत्नी हमेशा दुखी रहते थे क्योंकि उनके वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं था।सेठ और सेठानी के बहुत तप-जप करने के बाद एक संतान की प्राप्ति हुई। हालांति ज्योतिषियों ने पहले ही बता दिया कि नवजात शिशु अल्पायु है। ज्योतिषियों के अनुसार उसकी कुल उम्र 17 की होगी। जिसको जानकर पति-पत्नी और भी दुखी हो गए थे। हालांकि उन्होंने ही इसे ही अपने पुत्र का भाग्य मान लिया था।
बीतते समय के साथ सेठ के लड़के की शादी की उम्र हो गई। संयोगवश सेठ के लड़के की शादी एक सुंदर और संस्करी कन्या से हुई। कन्या की मां और कन्या दोनों ही मंगला गौरी का व्रत करती और मां पार्वती की विधिवत पूजन करती थी। इसी वजह उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त था। जिसकी वजह से सेठ के पुत्र की मृत्‍यु टल गई। लड़के की सास और पत्नी के अर्जित फल से यह संभव हो सका।


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