सावन में कर लें भगवान शिव के अलग-अलग रूपों की पूजा, मनोवांछित फल और आरोग्य की होगी प्राप्ति

देवाधिदेव शिव, तो आशुतोष हैं, अपने सच्चे निर्मल हृदय वाले भक्तों पर सदा अपनी कृपा बरसाते हैं. उनके असंख्य नाम और रूप हैं. भक्त भी उनके विभिन्न रूपों में निष्ठापूर्वक उपासना करते हैं

Update: 2022-07-31 02:30 GMT

 देवाधिदेव शिव, तो आशुतोष हैं, अपने सच्चे निर्मल हृदय वाले भक्तों पर सदा अपनी कृपा बरसाते हैं. उनके असंख्य नाम और रूप हैं. भक्त भी उनके विभिन्न रूपों में निष्ठापूर्वक उपासना करते हैं जिससे उनकी कामनाएं पूरी होती हैं और पाप से मुक्ति मिलती है. तो आइए इस लेख में भोलेशंकर के विभिन्न रूपों और उनकी पूजा करने के लाभ के बारे में जानते हैं.

भगवान अर्धनारीश्वर- शिव के इस रूप का एक भाग नर अर्थात शिव का और एक भाग नारी अर्थात माता पार्वती का है. दोनों एक ही रूप में व्याप्त हैं. अर्धनारीश्वर की पूजा से जगत पिता शिव और माता पार्वती प्रसन्न होकर मनोवांक्षित फल प्रदान करती हैं.

पंचमुख शिव- भगवान के इस रूप में पांच मुख हैं. इनमें पहला मुख ऊर्ध्वमुख है जिसका रंग हल्का लाल है, दूसरा पूर्व मुख है जिसका रंग पीला है, तीसरा दक्षिण मुख है जिसका रंग नीला, चौथा पश्चिम मुख जिसका रंग भूरा, और पांचवां उत्तर मुख है जिसका रंग पूरी तरह से लाल है. इन सभी मुखों के ऊपर मुकुट में चंद्रमा सुशोभित है. इस संपूर्ण मुख मंडल से एक अद्भूत आभा फूटती है.

पशुपति शिव- भगवान के इस रूप को पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है. नेपाल की राजधानी काठमांडू में इस रूप का विश्व में सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर है. भगवान के इस रूप में सूर्य, चंद्रमा व अग्नि को तीनों नेत्रों में स्थान मिला है. भक्तों का विश्वास है कि पशुपति भगवान सभी कष्टों को हर लेते हैं.

महामृत्युंजय शिव- जैसा कि नाम से स्पष्ट है, भगवान का यह रूप मृत्यु के भय से परे है. उनके इस रूप का ध्यान कर मृत्यु का भय दूर हो जाता है और मृत्यु पर विजय भी पाई जा सकती है. महामृत्युंजय महामंत्र का सवा लाख जप करने या करवाने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है तथा अकाल मृत्यु से रक्षा होती है.

नीलकंठ- भगवान के इस रूप में भगवान का कंठ अर्थात गला नीले रंग का है. समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने विषपान कर लिया था जिससे उन का समस्त कंठ नीला हो गया इसीलिए उनका यह विग्रह नीलकंठ कहलाये. भगवान के इस रूप में उनके मुख में अत्यधिक तेज व्याप्त है जिसकी तुलना हजारों सूर्यों के तेज से की जा सकती है.

नटराज शिव- यह भगवान शिव का रौद्र रूप है. इस रूप में भगवान नृत्य मुद्रा में हैं. उन्होंने यह नृत्य युद्ध के समय किया था. इसे तांडव नृत्य कहते हैं. इसमें भगवान की जटाएं खुली हुई हैं तथा उनका मुख क्रोध से लाल है. इन रूपों के अतिरिक्त भगवान शिव के अन्य अनेक रूप हैं. इनमें बारह ज्योतिर्लिंगों के रूप, गौरीपति शिव, अग्निकेश्वर, महाकाल, महेश्वर आदि प्रमुख है।

सदाशिव- भगवान का यह रूप अत्यंत प्रसन्न तथा शांत मुद्रा में है. इनके मस्तक पर चंद्रमा तथा गले में सर्प विराजमान है. भगवान बाघ की खाल के आसन पर आसीन हैं. ये सभी रोगों, दोषों और पापों का शमन कर शिव तत्व अर्थात शुभत्व एवं सुंदरता प्रदान करते हैं.


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