महेश नवमी 8 जून को क्यों मनाया जाता है इस विधि से करें पूजा, ये है शुभ मुहूर्त
वैसे तो महेश नवमी का पर्व सभी लोग मनाते हैं,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उज्जैन. वैसे तो महेश नवमी का पर्व सभी लोग मनाते हैं, लेकिन माहेश्वरी समाज इस उत्सव को विशेष रूप से मनाता है, क्योंकि मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी। इससे जुड़ी कथाएं भी प्रचलित हैं, उसके अनुसार, माहेश्वरी समाज के लोग एक श्राप के कारण पीड़ित थे। तब उन्होंने भगवान की आराधना की। महादेव ने उन्हें श्राप से मुक्ति दिलाई और अपना नाम (महेश) दिया। तभी से वे माहेश्वरी कहलाए। महेश नवमी पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत व पूजा करने का भी विधान है। जो इस प्रकार है…
महेश नवमी के शुभ मुहूर्त (Mahesh Navami 2022 shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, 8 जून ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ सुबह 08:30 से होगा, जो अगले दिन 9 जून की सुबह 08:31 तक रहेगी। 8 जून को पूरे दिन अष्टमी तिथि होने इस दिन कभी भी भगवान शिव की पूजा की जा सकेगी।
इस विधि से करें पूजा…(Mahesh Navami 2022 Puja Vidhi)
- महेश नवमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल, फल, फूल और चावल लेकर इस मंत्र से व्रत का संकल्प लें-
मम शिवप्रसाद प्राप्ति कामनया महेशनवमी-निमित्तं शिवपूजनं करिष्ये।
- संकल्प करने के बाद माथे पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला पहनें। कुंकुम, अबीर, गुलाल, फूल और बिल्वपत्र आदि से भगवान शिव-पार्वती की पूजा करें। यदि शिवजी की प्रतिमा न हो तो मिट्टी से अंगूठे के आकार की मूर्ति बनाएं। मूर्ति बनाते समय महेश्वराय नम: का स्मरण करते रहें।
- इसके बाद शूलपाणये नम: से प्रतिष्ठा और पिनाकपाणये नम: से आह्वान करके शिवाय नम: से स्नान कराएं और पशुपतये नम: से गन्ध, फूल, धूप, दीप और भोग अर्पण करें।
- इसके बाद इस प्रकार भगवान शिव से प्रार्थना करें-
जय नाथ कृपासिन्धोजय भक्तार्तिभंजन।
जय दुस्तरसंसार-सागरोत्तारणप्रभो॥
प्रसीदमें महाभाग संसारात्र्तस्यखिद्यत:।
सर्वपापक्षयंकृत्वारक्ष मां परमेश्वर॥
- इस प्रकार पूजा करने के बाद उद्यापन करके शिव मूर्ति का विसर्जन कर दें। इस प्रकार महेश नवमी पर भगवान शिव का पूजा करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी हो सकती है और घर में भी सुख-समृद्धि बनी रहती है।
इसलिए मनाते हैं महेश नवमी
महेश नवमी का पर्व मुख्य रूप से माहेश्वरी समाज द्वारा मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार, माहेश्वरी समाज के पूर्वज पूर्वकाल में क्षत्रिय वंश के थे। किसी कारणवश उन्हें ऋषियों ने श्राप दे दिया। तब इसी दिन भगवान शंकर ने उन्हें श्राप से मुक्त किया व अपना नाम भी दिया। यह भी प्रचलित है कि भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य या व्यापारिक कार्य को अपनाया। वैसे तो महेश नवमी का पर्व सभी समाज के लोग मनाते हैं, लेकिन माहेश्वरी समाज द्वारा इस पर्व को बहुत ही भव्य रूप में मनाया जाता है।