क्यों कहा जाता है भगवान विष्णु को हरि, जानें आज क्यों को होती है उनकी पूजा

शास्त्रों में हर सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवता को समर्पित किया गया है. गुरुवार का दिन भगवान विष्णु का होता है.

Update: 2021-02-18 02:30 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | शास्त्रों में हर सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवता को समर्पित किया गया है. गुरुवार का दिन भगवान विष्णु का होता है. हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार गुरुवार को भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से जीवन के सभी संकटों से छुटकारा मिलता है.

भगवान विष्णु को लोग हरि के नाम से भी पुकारते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु को हरि क्यों कहा जाता है और क्यों उनकी पूजा के लिए गुरुवार का दिन समर्पित किया गया ? आइए आपको बताते हैं…
इसलिए कहा जाता है हरि
कहा जाता है 'हरि हरति पापानि' यानी हरि हमारे जीवन के सभी पाप हर लेते हैं. हरि का अर्थ होता है हर लेने वाला यानी दूर करने वाला. शास्त्रों में भगवान विष्णु के लिए कहा गया है कि जो भक्त सच्चे दिल से उनका स्मरण करता है, भगवान विष्णु उसके सभी पापों को दूर करते हैं. चाहे कितना ही बड़ा संकट क्यों न हो वे उसे हर लेते हैं. इसलिए उन्हें भक्त हरि और श्रीहरि के नाम से प्रेम और श्रद्धापूर्वक पुकारते हैं.
क्यों गुरुवार को की जाती है भगवान विष्णु की पूजा
पौराणिक मान्यता के अनुसार पक्षियों में सबसे विशाल गरुड़ को भगवान विष्णु का वाहन माना जाता है. मान्यता है कि गरुड़ ने भगवान विष्णु को कठिन तपस्या करके प्रसन्न किया था. उसकी तपस्या से प्रसन्न होने के बाद विष्णु भगवान ने उसे अपने वाहन के रूप में स्वीकार कर लिया. गुरु का अर्थ भारी होता है और गरुड़ भी पक्षियों में सबसे भारी होता है. गरुड़ की सफल तपस्या के कारण गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित हो गया. इसके अलावा कुछ विद्वानों का ये भी मानना है कि गुरु बृहस्पति भगवान विष्णु के ही स्वरूप हैं. इसलिए गुरुवार के दिन को भगवान विष्णु का दिन माना जाता है.
भगवान विष्णु क्यों नाग पर लेटे रहते हैं
शास्त्रों में भगवान विष्णु के स्वरूप को क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते हुए दिखाया जाता है. क्षीर सागर का अर्थ है सुख यानी समृद्धि और शेषनाग दुख यानी विपत्ति की ओर इशारा करते हैं. क्षीरसागर और शेषनाग दोनों के बीच होकर भी भगवान विष्णु एकदम शांत भाव से लेटे हैं. इस स्वरूप का अर्थ है कि मनुष्यों को सुख और दुख दोनों ही परिस्थतियों में सम यानी समान भाव से रहना चाहिए. न सुख की कोई खुशी और न दुख का कोई ग़म.


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