मकर संक्रान्ति पर क्यों उड़ाई जाती है पतंग जानिए क्यों
मकर संक्रान्ति को नदी स्नान और दान-पुण्य के लिए बेहद खास दिन माना गया है. लेकिन इस दिन तमाम जगहों पर पतंग उड़ाने की भी परंपरा है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आज 14 जनवरी को दान-पुण्य का त्योहार मकर संक्रान्ति (Makar Sankranti) मनाया जा रहा है. जब सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब उस दिन को मकर संक्रान्ति के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. आज दोपहर 02:40 बजे सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से 16 घटी पहले और 16 घटी बाद के समय को पुण्यकाल के लिए श्रेष्ठ माना गया है. ऐसे में ये त्योहार आज मनाया जाएगा. माना जाता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही उत्तरायण (Uttarayan) शुरू हो जाता है. उत्तरायण शुरू होते ही खरमास (Kharmas) समाप्त हो जाता है और मांगलिक कार्यों की फिर से शुरुआत हो जाती है.
मकर संक्रान्ति के दिन गुजरात और राजस्थान समेत भारत के तमाम राज्यों में पतंग उड़ाने की भी परंपरा है. कई जगहों पर पतंगबाजी की प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि पतंग उड़ाने की ये परंपरा कैसे शुरू हुई. आइए यहां जानते हैं इसके बारे में.
भगवान राम ने शुरू की थी ये परंपरा
कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन पहली बार भगवान राम ने पतंग उड़ाई थी. इसको लेकर एक कथा भी प्रचलित है. कथा के अनुसार एक बार मकर संक्रान्ति के दिन उत्तरायण की खुशी में भगवान राम पतंग उड़ा रहे थे. लेकिन वो पतंग उड़कर इन्द्रलोक में चली गई और इंद्र के पुत्र जयंत को मिली. इसके बाद उसने वो पतंग अपनी पत्नी को सौंप दी. इधर भगवान राम ने हनुमान जी को वो पतंग इन्द्रलोक से वापस लाने के लिए कहा. जब हनुमानजी ने इंद्रलोक पहुंच कर जयंत की पत्नी से पतंग वापस मांगी तो उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वो पहले श्रीराम के दर्शन करना चाहती हैं. इस पर हनुमान ने भगवान राम को पूरा बात बताई. तब श्रीराम बोले कि वे चित्रकूट में उनके दर्शन कर सकती हैं. हनुमान जी ने राम जी का संदेश जब उन्हें दिया तो उन्होंने श्रीराम की पतंग लौटा दी. इसके बाद से मकर संक्रान्ति पर पतंग उड़ाने की परंपरा शुरू हुई और भारत में तमाम जगहों पर इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है.
एकता सिखाती है पतंग
आज के समय में पतंगबाजी लोगों को एकता का पाठ सिखाती है. पतंग उड़ाने के बहाने परिवार और आसपास के सभी सदस्य एक साथ समय बिताते हैं. एक व्यक्ति डोर को संभालता है तो दूसरा मांझा साधता है. तमाम लोग उस पतंग बाजी को देखकर आनंदित होते हैं. इसमें हारकर भी कोई बुरा नहीं मानता. इस तरह से लोग जीवन में पतंगबाजी के बहाने जय और पराजय दोनों स्थितियों को स्वीकार करना सीखते हैं. इसके अलावा मकर संक्रान्ति के दौरान कड़ाके की ठंड होती है. ऐसे में पतंग उड़ाते समय लोगों को खुली धूप का लंबे समय तक आनंद लेने का मौका मिलता है. इस बहाने उनके शरीर को विटामिन-डी भी मिल जाता है और शरीर को गर्माहट भी मिलती है.
खुशी और उल्लास का संदेश देती है पतंग
पतंग उड़ाते समय व्यक्ति अंदर से काफी खुश होता है. जैसे जैसे पतंग उड़ान पकड़ती है, उसका मन भी तमाम चिंताओं से मुक्त होकर पतंगबाजी में लग जाता है. ऐसे में व्यक्ति हर क्षण का पूरा आनंद लेता है. पतंग को ऊंचाई तक उड़ाना और कटने से बचाने के लिए हर पल सोचना इंसान को नई सोच की प्रेरणा और शक्ति देता है. इस कारण पतंग को खुशी और उल्लास का संदेशवाहक भी माना जाता है