सावन मास को भगवान शिव का प्रिय माह क्यों कहा जाता है जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक पांचवां माह श्रावण मास का होता है। इसे सावन मास के नाम से भी जानते हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक पांचवां माह श्रावण मास का होता है। इसे सावन मास के नाम से भी जानते हैं। यह पूरा माह भगवान शिव को ही समर्पित होता है। इसी कारण इसे भोलेनाथ का सबसे प्रिय मास कहा जाता है। इस साल सावन 14 जुलाई से शुरू हो रहे हैं। इस पूरे मास में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की विधिवत पूजा करने का विधान है। शिव पुराण के अनुसार, सावन मास में भगवान शिव और माता पार्वती भू-लोक में निवास करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर सावन मास को भी भगवान शिव का प्रिय माह क्यों कहा जाता है। जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा।
इस कारण भगवान शिव को पसंद है सावन माह
धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को सावन माह काफी प्रिय है। क्योंकि दक्ष की पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक शापित जीवन जिया। इसके बाद वह हिमालयराज के घर में पुत्री के अवतार में जन्म लिया। जहां उनका नाम पार्वती रखा गया। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने का दृढ़ निश्चय लिया। ऐसे में मां पार्वती ने कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके विवाह करने का प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद सावन माह में ही शिव जी का विवाह माता पार्वती से हुआ था। सावन मास में भगवान शिव अपने ससुराल आए थे, जहां पर उनका अभिषेक करके धूमधाम से स्वागत किया गया था। इस वजह से भी सावन माह में अभिषेक का महत्व है।
सावन की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सावन मास में ही समुद्र मंथन हुआ था। इस मंथन से हलाहल विष निकला तो चारों तरफ हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने विष को कंठ में धारण कर लिया। विष की वजह से कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। विष का प्रभाव कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया, जिससे उन्हें राहत मिली। इससे वे प्रसन्न हुए। तभी से हर साल सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने या उनका जलाभिषेक करने का रिवाज शुरू हो गया।