मां दुर्गा की उपासना में ज्वार, कलश, दीपक समेत नारियल का क्यों है महत्व?
अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होने वाले नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। इस बार 07 अक्टूबर,गुरुवार से शारदीय नवरात्र आरंभ हो रहे हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होने वाले नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। इस बार 07 अक्टूबर,गुरुवार से शारदीय नवरात्र आरंभ हो रहे हैं। ये नौ दिन माता की भक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन दिनों में देवी भगवती की आराधना और साधना में प्रयुक्त होने वाली प्रत्येक पूजा सामग्री का प्रतीकात्मक महत्व होता है एवं हर एक सामग्री के पीछे कोई न कोई उद्देश्य या संदेश जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं क्या हैं ये संदेश-
ज्वारे
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही देवी के समक्ष जौ बोने का विधान है। दुर्गा पूजा में जौ को बेहद शुभ माना गया है। जौ समृद्धि, शांति, उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जौ उगने की गुणवत्ता से भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। माना जाता है कि अगर जौ तेज़ी से बढ़ते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है वहीं अगर ये बढ़ते नहीं और मुरझाए हुए रहते हैं तो भविष्य में किसी तरह के अमंगल का संकेत देते हैं।
कलश
धर्म शास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों एवं तीर्थों का वास होता है इसलिए नवरात्रि पूजा में घट स्थापना का सर्वाधिक महत्व है। कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र,सभी नदियां,सागरों, सरोवरों एवं 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है।
बंदनवार
प्राचीन काल से ही पूजा-अनुष्ठान के दौरान मुख्य द्धार पर आम या अशोक के पत्तों की बंदनवार लगाईं जाती है। ऐसा करने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करतीं। मान्यता है कि देवी पूजा के प्रथम दिन देवी के साथ तामसिक शक्तियां भी होती हैं । देवी घर में प्रवेश करती हैं,पर बंदनवार लगी होने से तामसिक शक्तियां घर के बाहर ही रहती हैं।
दीपक
नवरात्रि के समय घर में शुद्ध देसी घी का अखंडदीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है,नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होती हैं एवं इससे आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। दीपक,साधना में सहायक तृतीय नेत्र और हृदय ज्योति का प्रतीक है । इससे हमें जीवन के उर्ध्वगामी होने,ऊंचा उठने और अन्धकार को मिटा डालने की प्रेरणा मिलती है।
गुड़हल का पुष्प
पौराणिक मान्यता है कि गुड़हल का लाल पुष्प अर्पित करने से देवी प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं। सुर्ख लाल रंग का यह पुष्प अति कोमल होने के साथ ही असीम शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है,इसलिए लाल गुड़हल देवी माँ को अत्यंत प्रिय है।
नारियल
नवरात्रि पूजा में कलश के ऊपर नारियल पर लाल कपडा और मोली लपेटकर रखने का विधान है। माना जाता है कि इससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। नारियल के बाहरी आवरण को अहंकार का प्रतीक और आंतरिक भाग को पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है। माँ दुर्गा के समक्ष नारियल को तोड़ने का तात्पर्य अहंकार को तोडना है।