क्यों मनाया जाता है मोहर्रम? जानें महत्व
मोहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है। यह महीना शिया और सुन्नी मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मोहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है। यह महीना शिया और सुन्नी मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस माह के 10वें दिन आशुरा मनाया जाता है। यह इस्लाम मजहब का प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार 19 या 20 अगस्त 2021 को मनाया जा सकता है। आइए जानते हैं इस्लामिक पर्व मोहर्रम से जुड़ी रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी-
इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि अशुरा के दिन इमाम हुसैन का कर्बला की लड़ाई में सिर कलम कर दिया था और उनकी याद में इस दिन जुलूस और ताजिया निकालने की रिवायत है। अशुरा के दिन तैमूरी रिवायत को मानने वाले मुसलमान रोजा-नमाज के साथ इस दिन ताजियों-अखाड़ों को दफन या ठंडा कर शोक मनाते हैं।
इस दिन मस्जिदों पर फजीलत और हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर विशेष तकरीरें होती हैं। इस्लामिक मान्यता के अनुसार, अशुरा को मोहम्मद हुसैन के नाती हुसैन की शहादत के दिन रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को शिया और सुन्नी दोनों मुस्लिम समुदाय के लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं।
इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम मनाया जाता है। यह कोई त्योहार नहीं बल्कि मातम का दिन है। जिसमें शिया मुस्लिम दस दिन तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं। इमाम हुसैन अल्लाह के रसूल यानी मैसेंजर पैगंबर मोहम्मद के नवासे थे।
मोहम्मद साहब के मरने के लगभग 50 वर्ष बाद मक्का से दूर कर्बला के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया। कर्बला जिसे अब सीरिया के नाम से जाना जाता है। वहां यजीद इस्लाम का शहंशाह बनाना चाहता था। इसके लिए उसने आवाम में खौफ फैलाना शुरू कर दिया। लोगों को गुलाम बनाने के लिए वह उन पर अत्याचार करने लगा।
यजीद पूरे अरब पर कब्जा करना चाहता था। लेकिन उसके सामने हजरत मुहम्मद के वारिस और उनके कुछ साथियों ने यजीद के सामने अपने घुटने नहीं टेके और जमकर मुकाबला किया। अपने बीवी बच्चों की सलामती के लिए इमाम हुसैन मदीना से इराक की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में कर्बला के पास यजीद ने उन पर हमला कर दिया।
इमाम हुसैन और उनके साथियों ने मिलकर यजीद की फौज से डटकर सामना किया। हुसैन के काफिले में 72 लोग थे और यजीद के पास 8000 से अधिक सैनिक थे लेकिन फिर भी उन लोगों ने यजीद की फौज के समाने घुटने नहीं टेके। हालांकि वे इस युद्ध में जीत नहीं सके और सभी शहीद हो गए। किसी तरह हुसैन इस लड़ाई में बच गए। यह लड़ाई मुहर्रम 2 से 6 तक चली।
आखिरी दिन हुसैन ने अपने साथियों को कब्र में दफन किया मोहर्रम के दसवें दिन जब हुसैन नमाज अदा कर रहे थे, तब यजीद ने धोखे से उन्हें भी मरवा दिया। उस दिन से मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। ये शिया मुस्लिमों का अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है।
मोहर्रम के दस दिनों तक बांस, लकड़ी का इस्तेमाल कर तरह-तरह से लोग इसे सजाते हैं और ग्यारहवें दिन इन्हें बाहर निकाला जाता है। लोग इन्हें सड़कों पर लेकर पूरे नगर में भ्रमण करते हैं सभी इस्लामिक लोग इसमें इकट्ठे होते हैं। इसके बाद इन्हें इमाम हुसैन की कब्र बनाकर दफनाया जाता है। एक तरीके से 60 हिजरी में शहीद हुए लोगों को एक तरह से यह श्रद्धांजलि दी जाती है।