अनंत चतुर्दशी पर क्यों किया जाता है गणेश विसर्जन? जानिए रोचक कथा
भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलने वाला दस दिन का गणेश महोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलने वाला दस दिन का गणेश महोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। चतुर्थी के दिन भक्त अपने घरों, सार्वजनिक स्थानों और कार्यालयों में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करने के साथ गणेश उत्सव की शुरुआत करते हैं। दस दिनों तक उनकी पूजा-आराधना की जाती है, बप्पा को तरह-तरह के भोग लगाए जाते हैं और पूरे गणेश उत्सव के बाद धूमधाम के साथ गणेश जी को अनंत चतुर्दशी के दिन जल में विसर्जित कर दिया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों हम बप्पा को दस दिन तक पूजने के बाद विर्सजन ही करते हैं और इसके पीछे की कहानी क्या है?
विघ्न-बाधाओं को करते हैं दूर
गणेश विसर्जन के पीछे एक रोचक कथा है कि गणेश महोत्सव के आखिरी दिन भगवान गणेश अपने माता-पिता भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर लौटते हैं। गणेश चतुर्थी का उत्सव जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र के महत्व को बताता है। गणेश, जिन्हें नई शुरुआत के भगवान के रूप में भी जाना जाता है, बाधाओं के निवारण के रूप में भी पूजा जाता है। इसलिए जब गणेशजी की प्रतिमा को विसर्जन के लिए बाहर ले जाया जाता है तो वह अपने साथ घर की अनेकों प्रकार की नकारात्मक शक्तियों एवं विघ्न-बाधाओं को भी दूर कर देते है।
महाभारत से जुड़ा है प्रसंग
धार्मिक मान्यता है कि गणेशजी ने ही महाभारत जैसे महान ग्रंथ को लिखा था। कथा के अनुसार जब ऋषि वेदव्यास जी ने संपूर्ण महाभारत के दृश्य को अपने अंदर आत्मसात तो कर लिया परंतु वे लिखने में असमर्थ थे इसलिए उन्हें किसी ऐसे दिव्यआत्मा की आवश्यकता थी, जो बिना रुके पूरी महाभारत लिख सकें। तब उन्होंने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने वेदव्यासजी को सुझाव दिया कि गणेश जी बुद्धि के देवता हैं वे आपकी सहायता अवश्य करेंगे। तब उन्होंने गणेश जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की। गणपति बप्पा को लेखन में विशेष दक्षता हासिल है, उन्होंने महाभारत लिखने के लिए स्वीकृति दे दी। ऋषि वेदव्यास ने चतुर्थी के दिन से लगातार दस दिनों तक महाभारत का पूरा वृतान्त गणेश जी को सुनाया जिसे गणेश जी ने अक्षरशः लिखा।
महाभारत पूरी होने के बाद जब वेदव्यास जी ने अपनी आखें खोली तो देखा कि गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत अधिक हो गया था। उनके शरीर के तापमान को कम करने के लिए वेदव्यास जी ने गणेश जी के शरीर पर मिट्टी का लेप किया, मिट्टी सूख जाने के बाद उनका शरीर अकड़ गया और शरीर से मिट्टी झड़ने लगी तब भी ऋषि वेदव्यास ने गणेश जी को सरोवर में ले जाकर मिट्टी का लेप साफ किया था और उनको सरोवर में डुबकी लगवाई। कथा के अनुसार जिस दिन गणेश जी ने महाभारत को लिखना आरंभ किया था, वह भादों मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी का दिन था, और जिस दिन महाभारत पूर्ण हुई वह अनंत चतुर्दशी का दिन था। तभी से गणेश जी को दस दिनों तक बिठाया जाता है और ग्याहरवें दिन गणेश उत्सव के बाद बप्पा का विसर्जन किया जाता है।