हिरण्यकश्यप के घर जन्मा था भक्त प्रह्लाद
कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप के घर में एक बेटे का जन्म हुआ. उसका नाम प्रह्लाद रखा गया. प्रह्लाद कुछ बड़ा हुआ तो उसे पाठशाला में पढ़ने के लिए भेज दिया गया. पाठशाला के गुरु ने प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप का नाम जपने की शिक्षा दी. लेकिन प्रह्लाद हिरण्यकश्यप के स्थान पर भगवान विष्णु का नाम जपता था. वह भगवान विष्णु को हिरण्यकश्यप से बड़ा समझता था.
गुरु ने हिरण्यकश्यप से प्रह्लाद की शिकायत कर दी. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बुलाकर पूछा कि वह उसका नाम जपने के बजाय विष्णु का नाम क्यों जपता है. प्रह्लाद ने उत्तर दिया, "ईश्वर सर्व शक्तिमान हैं, उन्होंने ही सारी सृष्टि को रचा है." अपने पुत्र का उत्तर सुनकर हिरण्यकश्यप को गुस्सा आ गया. उसे डर था कि प्रह्लाद को देखकर बाकि जनता भी कहीं विष्णु को ही भगवान न मानने लगे. उसने प्रह्लाद को आदेश दिया, "मैं ही सबसे अधिक शक्तिशाली हूं, मुझे कोई नहीं मार सकता, मैं तुझे अब खत्म कर सकता हूं."
अपनी भक्ति पर अडिग था प्रह्लाद
हिरण्यकश्यप की आवाज सुनकर प्रह्लाद की माता भी वहां आ गई. उसने हिरण्यकश्यप से विनती करते हुए कहा, "आप इसे न मारें, मैं इसे समझाने का यतन करती हूं." वे प्रह्लाद को अपने पास बिठाकर कहने लगी, "तेरे पिता जी इस धरती पर सबसे शक्तिशाली हैं. उन्हें अमर रहने का वरदान मिला है. इनकी बात मान ले. फिर प्रह्लाद बोला, "माता जी मैं मानता हूं कि मेरे पिता बहुत ताकतवर हैं, पर सबसे अधिक बलवान भगवान विष्णु हैं. जिसने हम सभी को बनाया है. पिता जी को भी उन्होंने ही बनाया है.
प्रह्लाद का ये उत्तर सुनकर मां बेबस हो गयी. प्रह्लाद अपने विश्वास पर आडिग था. ये देख हिरण्यकश्यप को और गुस्सा आ गया. उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि वे प्रह्लाद को सागर में डुबाकर मार दें. सिपाही प्रह्लाद को सागर में फेंकने के लिए ले गए और पहाड़ से सागर में फेंक दिया. लेकिन भगवान के चमत्कार से सागर की एक लहर प्रह्लाद को किनारे पर ले आई. सिपाहियों ने एक बार फिर प्रह्लाद को सागर में फेंका. लेकिन इस बार भी प्रह्लाद बच गया. फिर सिपाहियों ने हिरण्यकश्यप को आकर बताया कि कई बार प्रयास करने के बाद भी वह नहीं मरा.
कई प्रयास के बावजूद प्रह्लाद को नहीं आई खरोंच
हिरण्यकश्यप ने अब सिपाहियों से कहा कि उसे किसी ऊंचे पर्वत से नीचे फेंक कर मार दो. सिपाहियों ने प्रह्लाद को जैसे ही पर्वत से नीचे फेंका, प्रह्लाद एक घने वृक्ष पर जाकर गिर गया, जिस कारण उसको कोई चोट नहीं लगी और वह सुरक्षित बच गया. अब हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को एक पागल हाथी के आगे फेंकने को कहा, ताकि हाथी उसे कुचल कर मार डाले. लेकिन पागल हाथी ने भी प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया मानो सारी कुदरत प्रह्लाद की मदद कर रही हो.
सभी प्रयास विफल होने के बाद हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने अपने भाई की समस्या का हल निकालने का प्रयास किया. बता दें कि होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती. उसने अपने भाई से कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाएगी. वरदान के कारण वह खुद तो आग में जलने से बच जाएगी लेकिन प्रह्लाद जल जाएगा. लेकिन हुआ इसका उलट. होलिका जैसे ही प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठी तो वह जलने लगी जबकि प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ. होलिका ने जब वरदान में मिली शक्ति का दुरूपयोग किया तो वो वरदान उसके लिए श्राप बन गया.
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होलिका दहन
रंगों वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन होता है. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है परंतु यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार की धरती पर हुआ था. जनश्रुति के मुताबिक उस घटना के बाद से ही प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई.
मान्यता है कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में ही वह जगह है, जहां होलिका भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर दहकती आग के बीच बैठी थी. इसी दौरान भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था, जिन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिकलीगढ़ में हिरण्यकश्य का किला था. यहीं भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए एक खंभे से भगवान नरसिंह अवतार लिए थे. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है. कहा जाता है कि इसे कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया. यह स्तंभ झुक तो गया, लेकिन टूटा नहीं.