अनंत चतुर्दशी के दिन क्यों होता है गणपति विसर्जन.....जानिए इसके पीछे की कथा
हर साल भादों मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को अनंत चतुर्दशी और गणपति विसर्जन का पर्व मनाया जाता है. लेकिन क्या आप इसके पीछे का कारण जानते हैं कि आखिर क्यों अनंत चतुर्दशी के दिन होता है गणपति विसर्जन.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर साल भादों मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से गणेश उत्सव की शुरूआत होती है जो अगले 10 दिन तक यानी अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) तक चलता है. आज अनंत चतुर्दशी है. ये दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है. अनंत चतुर्दश के दिन गणपति विसर्जन (Ganpati Visarjan) होता है. भक्त इस दिन ढोल और नगाड़ों के साथ बप्पा की विदाई करते हैं. मान्यता है कि बप्पा अपने भक्तों के कष्ट को दूर करते हैं और उनके जीवन में सुख – समृद्धि आती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा हैं कि आखिर दस दिन बाद बप्पा की पूजा के बाद विसर्जन क्यों किया जाता हैं और इसके पीछे का क्या कारण हो सकता है.
हिंदू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूज्य देवता के रूप में जाना जाता है. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेशजी की पूजा अर्चना की जाती है ताकि किसी भी तरह का विघ्न दूर हो जाए. इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि गणेश जी की प्रतिमा को जब बाहर ले जाया जाता हैं तो वे अपने साथ नकारात्मक शक्तियों और बाधाओं को भी ले जाते हैं. आपके जीवन में सुख- समृद्धि का वास होता है.
महाभारत से जुड़ी है कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत जैसे महान ग्रंथ को गणेशजी ने लिखा था. कहा जाता है कि ऋषि वेदव्यास ने महाभारत को आत्मसात कर लिया था लेकिन वे लिखने में असमर्थ थे. इस ग्रंथ को लिखने के लिए किसी दिव्यआत्मा की आवश्यकता थी जो बिना रुके इस ग्रंथ को लिख सकें. इस समस्या का निवारण करने के लिए ऋषि वेदव्यास ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की. उन्होंने सुझाव दिया कि गणेश जी बुद्धि के देवता हैं. वे अपकी साहयता जरूर करेंगे.
तब ऋषि वेदव्यास ने गणेश जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की और उन्होंने अपने स्वीकृती दे दी. ऋषि वेदव्यास ने चतुर्थी के दिन से महाभारत का वृतांत सुनाया और गणेशजी बिना रुके लिखते रहें. 10 वें दिन जब ऋषि वेदव्यास ने अपनी आंखे खोली तो देखा की उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया है. शरीर के तापमान को कम करने के लिए ऋषि वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगाया और सूखने के बाद ठंडक प्रदान करने के लिए नदी में गणेशजी को डुबकी लगवाई. उस दिन अनंत चतुर्दशी का दिन था. इसलिए गणेशजी को चतुर्थी के दिन स्थापित किया जाता है और अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन किया जाता है.