आज अक्षय नवमी के दिन क्यों करते हैं आंवले के वृक्ष की पूजा, जने इसके पीछे का महत्व
कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी कहते हैं। इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। पुराणों के मतानुसार, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने की भी मान्यता है।
कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी कहते हैं। इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। पुराणों के मतानुसार, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने की भी मान्यता है। अक्षय का अर्थ है, जिसका क्षरण न हो। मान्यता है कि इस दिन किए गए सद्कार्यो का फल अक्षय रहता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने कंस के विरुद्ध मथुरा वृंदावन में घूमकर जनमत तैयार किया था। इसलिए अक्षय नवमी पर मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करने का भी विधान है। अगले दिन दशमी को कृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध कर दिया था। अत: यह पर्व सत्य की जीत का संदेश देता है। सत्य ही अक्षय है। अत: सर्वदा सत्य का ही वरण करना चाहिए।
अक्षय नवमी 2021 कथा
अक्षय नवमी के संबंध में कथा है कि दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन के इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था। एक बार राजकुमार मुकुंद देव जंगल में शिकार खेलने गए। तभी उनकी नजर व्यापारी कनकाधिप की पुत्री किशोरी के अतीव सौंदर्य पर पड़ी। वे उस पर मोहित हो गए। मुकुंद देव ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की।
इस पर किशोरी ने कहा कि मेरे भाग्य में पति का सुख लिखा ही नहीं है। राज ज्योतिषी ने कहा है कि मेरे विवाह मंडप में बिजली गिरने से मेरे वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी। परंतु मुकुंद देव अपने प्रस्ताव पर अडिग थे। उन्होंने अपने आराध्य देव सूर्य और किशोरी ने अपने आराध्य भगवान शंकर की आराधना की। भगवान शंकर ने किशोरी से भी सूर्य की आराधना करने को कहा।
किशोरी गंगा तट पर सूर्य आराधना करने लगी। तभी विलोपी नामक दैत्य किशोरी पर झपटा तो सूर्य देव ने उसे तत्काल भस्म कर दिया। सूर्य देव ने किशोरी से कहा कि तुम कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो।
दोनों ने मिलकर मंडप बनाया। अकस्मात बादल घिर आए और बिजली चमकने लगी। भांवरें पड़ गईं, तो आकाश से बिजली मंडप की ओर गिरने लगी, लेकिन आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया। इस कहानी के कारण आंवले के वृक्ष की पूजा होने लगी। हालांकि आंवले का वृक्ष औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। आयुर्वेद में इसके अनेक गुण बताए गए हैं। इसलिए इसकी पूजा का तात्पर्य औषधीय वनस्पतियों का संरक्षण व प्रकृति का सम्मान करना भी है।