यज्ञ के लिए दक्ष प्रजापति ने क्यों नहीं दिया था भगवान शिव और बेटी सती को निमंत्रण
वन में सीता की खोज में व्याकुल प्रभु श्री राम की सती जी द्वारा परीक्षा लेने से व्यथित शिव जी ने मन ही मन उनका परित्याग कर दिया
वन में सीता की खोज में व्याकुल प्रभु श्री राम की सती जी द्वारा परीक्षा लेने से व्यथित शिव जी ने मन ही मन उनका परित्याग कर दिया और कैलाश पर्वत पर पहुंच कर अखंड समाधि में लीन हो गए. सती जी भी दुखी मन से कैलाश में ही रहने लगीं, उन्होंने दुखी भाव से प्रभु श्री राम का स्मरण कर कहा कि विनती की कि आप तो सबका दुख हरने वाले हैं, वर्तमान स्थितियों में तो यही चाहती हूं कि मेही यह देह ही जल्दी से जल्दी छूट जाए. लगभग 87 हजार वर्ष बीत जाने पर शिव जी ने श्री राम का नाम लेते हुए समाधि खोली तो सती जी ने जाना कि जगत के स्वामी जाग गए हैं, उन्होंने आगे बढ़ कर प्रणाम किया तो शिव जी ने सामने बैठने के लिए आसन दिया. शिव जी श्री हरि की कथाएं सुनाने लगे. इसी समय में दक्ष प्रजापति हुए और ब्रह्मा जी ने उन्हें सब प्रकार से योग्य मान कर प्रजापतियो का नायक बना दिया.