कौन है भगवान शालिग्राम, जानें इसके बारे में...
भगवान विष्णु के निराकार तथा विग्रह रूप को शालिग्राम कहा जाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भगवान विष्णु के निराकार तथा विग्रह रूप को शालिग्राम कहा जाता है। जिस प्रकार भगवान शिव का उनके निराकार रूप शिवलिंग का पूजन होता है, उसी प्रकार भगवान विष्णु का विग्रह रूप शालिग्राम है। वैष्णव संप्रदाय में भगवान विष्णु के चतुर्भुजी मूर्ति रूप के साथ निराकार, विग्रह रूप के पूजन का भी विधान है। श्री हरि के शालीग्राम रूप का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार तुलसी जी के श्राप के कारण श्री हरि विष्णु हृदयहीन शिला में बदल गए थे। उनके इसी रूप को शालिग्राम कहा गया है। आज देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी मां के विवाह का भी आयोजन किया जाता है। आइए जानते हैं भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के बारें में रोचक तथ्य....
जानिए, क्या हैं शालिग्राम –
धार्मिक मान्यता के अनुसार शालिग्राम भगवान विष्णु के विग्रह रूप को कहा जाता है। यह नेपाल के गण्डक या नारायणी नदी की तली में पाये जाते हैं। यहां पर सालग्राम नामक स्थान पर भगवान विष्णु का मंदिर है, जहां उनके इस रूप का पूजन होता है। कहा जाता है कि इस ग्राम के नाम पर ही उनका नाम शालिग्राम पड़ा। वैज्ञानिक आधार पर शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर होता है। जिसे जीव वैज्ञानिक एमोनोइड जीवाश्म कहते हैं। ये जीवाश्य विशिष्ट गुण युक्त होते हैं। ये पत्थर काले, गोल, अण्डाकार, सुनहरी आभा लिए हुए कई तरह के होते हैं। उनके अलग-अलग रूप का संबंध भगवान विष्णु के विविध रूपों से माना जाता है।
शालिग्राम के विविध रूपों के अर्थ –
अपनी आकृति, रंग, रूप और चिन्ह के आधार पर शालिग्राम कई प्रकार के होते हैं। जिनका अलग-अलग रूप से पूजन का विधान है। पुराणों में 33 प्रकार के शालिग्राम भगवान का उल्लेख है, जिनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम का संबंध भगवान विष्णु के 24 अवतारों से माना जाता है। यदि शालिग्राम का आकार गोल है तो उसे भगवान का गोपाल रूप माना जाता है। मछली के आकार के लंबे शालिग्राम मत्स्य अवतार का प्रतीक हैं। कछुए के आकार के शालिग्राम को विष्णुजी के कच्छप या कूर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम पर उभरे हुए चक्र और रेखाएं विष्णुजी के अन्य अवतारों और रूपों का प्रतीक मानी जाती हैं। विष्णु जी के गदाधर रूप में एक चक्र का चिह्न होता है। लक्ष्मीनारायण रूप में दो, त्रिविक्रम तीन से, चतुर्व्यूह रूप में चार, वासुदेव में पाँच।