विनायक चतुर्थी के दिन पूजा करते समय अवश्य पढ़ें ये व्रत कथा

आज फाल्गुन मास की चतुर्थी तिथि है। इस तिथि पर गणेश जी की पूजा करने का विधान है।

Update: 2021-03-17 01:50 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | आज फाल्गुन मास की चतुर्थी तिथि है। इस तिथि पर गणेश जी की पूजा करने का विधान है। इस दिन को विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। आज बुधवार भी है और आज के दिन श्री गणेश की पूजा का विधान होता है। ऐसे में यह तिथि बेहद शुभ मानी जा रही है। इस दिन गणपति की पूजा करने से व्यक्ति को सौ गुना फल प्राप्त होता है। इस दिन पूजा करते समय व्यक्ति को व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। तो आइए पढ़ते हैं विनायक चतुर्थी की व्रत कथा।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती के मन में एक ख्याल आया कि उनका कोई पुत्र नहीं है। ऐसे में वो अपने मन से एक बालक बनाती हैं और उसमें प्राण दान देती हैं। फिर वे उस बालक को आदेश देकर कि चाहें कुछ भी हो जाए कंदरा में कोई प्रवेश न कर पाएं, कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने चली जाती हैं।
वह बालक अपनी माता के आदेश का पूरा पालन करता है। वह कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। कुछ समय बीत जाने के बाद माता पार्वती से मिलने भगवान शिव वहां पहुंचते हैं। जैसे ही भगवान शिव कंदरा के अंदर जाने लगते हैं तो वो बालक उनको रोक देता है। महादेव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं। लेकिन वह उनकी बात नहीं मानता है। वह क्रोधि हो जाते हैं और त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं।
जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो वह बेहद क्रोधित हुईं। उन्होंने देखा कि उनका पुत्र धरती पर प्राण विहीन पड़ा है। उसका शीश उसके धड़ से अलग कटा हुआ है। माता पार्वती का क्रोध देख सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं। शिवजी अपने सभी गणों को आदेश देते हैं कि एक ऐसे बालक का सिर लेकर आओ जिसकी माता की पीठ उसके बालक की ओर हो। शिवगण ऐसे बालक की तलाश में निकल जाते हैं और एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं। भगवान शिव गज के शीश को बालक के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर देते हैं
यह देख माता पार्वती कहती हैं कि यह शीश तो गज का है। हर कोई मेरे पुत्र का उपहास करेगा। तब शिवजी बालक को वरदान देते हैं कि आज से इन्हें गणपति के नाम से जाना जाएगा। सभी देवों में गणपति प्रथम पूज्य होंगे। बिना इनके कोई भी मांगलिक कार्य पूरा नहीं होगा।


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