विश्वकर्मा जयंती कब है, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व

विश्वकर्मा जयंती इस साल 17 सितंबर 2021 को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, विश्वकर्मा जयंती हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है

Update: 2021-09-08 02:34 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विश्वकर्मा जयंती इस साल 17 सितंबर 2021 को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, विश्वकर्मा जयंती हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इन्होंने ही इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका, जगन्नाथपुरी, भगवान शंकर का त्रिशुल, विष्णु का सुदर्शन चक्र का निर्माण किया था। माना जाता है कि विश्वकर्मा वास्तु देव के पुत्र हैं। 

भगवान विश्वकर्मा पूजा विधि

प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् पवित्र मन से अपने औजारों, मशीन आदि की सफाई करके विश्वकर्मा जी की प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए। उन्हें फल-फूल आदि चढ़ाना चाहिए। पूजा के दौरान "ॐ विश्वकर्मणे नमः" मंत्र का कम से कम एक माला जप अवश्य करना चाहिए। इसके बाद इसी मंत्र से आप हवन करें और उसके बाद भगवान विश्वकर्मा की आरती करके प्रसाद वितरित करें।

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस समस्त ब्रह्मांड की रचना भी विश्वकर्मा जी के हाथों से हुई है। ऋग्वेद के 10वे अध्याय के 121वे सूक्त में लिखा है कि विश्वकर्मा जी के द्वारा ही धरती, आकाश और जल की रचना की गई है। विश्वकर्मा पुराण के अनुसार आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की।

कहा जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाएं, भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं। भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है। पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र, भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं। वज्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था। माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था।

भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के बारे में विचार किया। इसकी जिम्मेदारी शिवजी ने भगवान विश्वकर्मा दी तब भगवान विश्वकर्मा ने सोने के महल को बना दिया। इस महल की पूजा करने के लिए भगवान शिव ने रावण का बुलाया। लेकिन रावण महल को देखकर इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने पूजा के बाद दक्षिणा के रूप में महल ही मांग लिया।

भगवान शिव ने महल को रावण को सौंपकर कैलाश पर्वत चले गए। इसके अलावा भगवान विश्वकर्मा ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर का निर्माण भी किया था। कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।

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