मार्च महीने में कब है पहला प्रदोष व्रत? जानिए शुभ मुहूर्त एवं व्रत नियम

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। मार्च महीने में यह व्रत 10 तारीख को रखा जाएगा।

Update: 2021-02-28 01:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। मार्च महीने में यह व्रत 10 तारीख को रखा जाएगा। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण यह बुध प्रदोष व्रत होगा। कहा जाता है कि इस व्रत को सबसे पहले चंद्रदेव ने रखा था। जिसके बाद भगवान शिव की कृपा से वह क्षय रोग से मुक्त हो गए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों के दान के बराबर फल मिलता है। प्रदोष व्रत को लेकर ऐसी मान्यता है कि त्रयोदशी तिथि में भगवान शिव काफी प्रसन्न होते हैं और शाम के समय कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं।

बुध प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त व तिथि-
प्रदोष व्रत तिथि- 10 मार्च (बुधवार)
फाल्गुन, कृष्ण त्रयोदशी प्रारम्भ - 10 मार्च को 02:40 PM
त्रयोदशी तिथि समाप्त - 11 मार्च को 02:39 PM
प्रदोष व्रत के नियम-
1. प्रदोष व्रत करने के लिए व्रती को त्रयोदशी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए।
2. नहाकर भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए।
3. इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।
4. गुस्सा या विवाद से बचकर रहना चाहिए।
5. प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
6. इस दिन सूर्यास्त से एक घंटा पहले नहाकर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
7. प्रदोष व्रत की पूजा में कुशा के आसन का प्रयोग करना चाहिए।
बुध प्रदोष व्रत कथा-
बुध प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार, एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ। विवाह के 2 दिनों बाद उसकी पत्‍नी मायके चली गई। कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्‍नी को लेने उसके यहां गया। बुधवार को जब वह पत्‍नी के साथ लौटने लगा तो ससुराल पक्ष ने उसे रोकने का प्रयत्‍न किया कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं होता। लेकिन वह नहीं माना और पत्‍नी के साथ चल पड़ा। नगर के बाहर पहुंचने पर पत्‍नी को प्यास लगी। पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चल पड़ा। पत्‍नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर बाद पुरुष पानी लेकर वापस लौटा, तब उसने देखा कि उसकी पत्‍नी किसी के साथ हंस-हंसकर बातें कर रही है और उसके लोटे से पानी पी रही है। उसको क्रोध आ गया।
वह निकट पहुंचा तो उसके आश्‍चर्य का कोई ठिकाना न रहा, क्योंकि उस आदमी की सूरत उसी की भांति थी। पत्‍नी भी सोच में पड़ गई। दोनों पुरुष झगड़ने लगे। भीड़ इकट्ठी हो गई। सिपाही आ गए। हमशक्ल आदमियों को देख वे भी आश्‍चर्य में पड़ गए। उन्होंने स्त्री से पूछा 'उसका पति कौन है?' वह कर्तव्यविमूढ़ हो गई। तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा- 'हे भगवान! हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्‍नी को विदा करा लिया। मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा।'
जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अंतर्ध्यान हो गया। पति-पत्‍नी सकुशल अपने घर पहुंच गए। उस दिन के बाद से पति-पत्‍नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष का व्रत रखने लगे।


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