कब है षटतिला एकादशी, जानिए कथा एवं महत्त्व

माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं. इस बार षटतिला एकादशी 7 फरवरी को रविवार के दिन पड़ रही है.

Update: 2021-02-01 10:15 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं. इस बार षटतिला एकादशी 7 फरवरी को रविवार के दिन पड़ रही है. हिंदू शास्त्रों में एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. भगवान विष्णु को समर्पित सभी एकादशी व्रतों को सारी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला और मोक्षदायक माना गया है. षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व माना जाता है. पूजा से लेकर दान और हवन करने तक इसका प्रयोग किया जाता है. जानिए इस व्रत से जुड़ी अन्य जानकारी.

षटतिला एकादशी पर तिलों का प्रयोग छह तरीके से करने का विधान है. इस दिन काले तिल का उबटन लगाते हैं. तिल को पानी में डालकर स्नान किया जाता है. तिल से हवन होता है, तर्पण किया जाता है, तिल को भोजन में शामिल किया जाता है और विशेष रूप से इसे दान किया जाता है.
तिल के दान का महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन व्रत रखकर काले तिलों का दान करने वाला व्यक्ति उतने ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करता है. व्रत के प्रभाव से उसे सभी कष्ट मिट जाते हैं और पापों का नाश होता है. इसके साथ ही उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ : 7 फरवरी 2021 सुबह 06 बजकर 26 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त : 8 फरवरी 2021 सुबह 04 बजकर 47 मिनट तक.
षटतिला एकादशी व्रत विधि
एकादशी व्रत के नियम दशमी रात से ही शुरू हो जाते हैं. दशमी को त्र सूर्यास्‍त के बाद भोजन ग्रहण न करें और रात में सोने से पहले भगवान विष्‍णु का ध्‍यान करें. सुबह जल्दी उठकर तिल का उबटन लगाएं और जल में तिल डालकर स्नान करें. स्नान आदि करके पूजा स्थल पर भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें.इसके बाद विघ्‍नहर्ता भगवान गणेश को नमन करने के बाद भगवान विष्णु का स्मरण करें.
फिर पांच मुट्ठी तिल लेकर 108 बार ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें. पूजा के दौरान भगवान को धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें. तिल की आहुति दें. व्रत कथा पढ़ें या सुनें. रात में कीर्तन करें. इसी के साथ भगवान से किसी प्रकार से हुई गलती के लिए क्षमा मांगे. दूसरे दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन खिलाएं व भोजन में तिल से बनी किसी चीज को शामिल करें. फिर दक्षिणा और तिल का दान करें. इसके बाद व्रत खोलें.
व्रत कथा
प्राचीन काल में पृथ्वी लोक पर एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी. जो भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी और पूरी श्रद्धा से उनका पूजन किया करती थी. एक बार की बात है कि उस ब्राह्मणी ने पूरे एक माह तक व्रत रखकर भगवान की उपासना की और व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया लेकिन वो ब्राह्नणी कभी अन्न दान नहीं करती थी.
तब एक दिन भगवान विष्णु स्वयं उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा मांगने पहुंचे. जब विष्णु देव ने भिक्षा मांगी तो उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर उन्हें दे दिया. इसके बाद जब ब्राह्मणी देह त्याग कर परमात्मा के लोक में गई तो उसे एक खाली कुटिया और आम का पेड़ प्राप्त हुआ.
खाली कुटिया को देखकर ब्राह्मणी ने प्रश्न किया कि मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब भगवान ने कहा कि यह अन्नदान नहीं करने और मिट्टी का पिण्ड दान देने की वजह से हुआ है.
तब भगवान विष्णु ने उस ब्रह्माणी को बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं, तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वो आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं. ब्राह्मणी ने देव कन्याओं से व्रत विधान जाना और फिर पूरे विधि विधान के साथ षटतिला एकादशी का व्रत किया जिससे उसकी कुटिया धन धान्य से भर गई.


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