प्रदोष व्रत के दिन क्या करें और किन चीजों से करें परहेज, जाने सब एक क्लिक पर

हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 2 दिसंबर को है।

Update: 2021-11-28 03:30 GMT

हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 2 दिसंबर को है। प्रदोष व्रत के दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा उपासना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत की कथा श्रवण मात्र से व्यक्ति के जीवन से सभी दुखों का नाश होता है। साथ ही शिव पार्वती की कृपा साधक बरसती है। अतः प्रदोष व्रत के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान शिवजी और माता पार्वती की पूजा-उपासना करें। इस व्रत के लिए कुछ कठोर नियम भी हैं। इन नियमों का पालन करने पर व्रत सफल माना जाता है। आइए जानते हैं कि प्रदोष व्रत में क्या करें और किन चीजों से परहेज करें-

प्रदोष व्रत की कथा
किदवंती है कि प्राचीन समय में पति की मृत्यु के बाद एक ब्राम्हणी अपना पालन-पोषण भिक्षा मांगकर करती थी। एक दिन की बात है कि जब ब्राम्हणी भिक्षा मांग कर लौट रही थी, तो उसे रास्ते में दो बालक मिले। कुछ समय बाद जब दोनों बालक बड़े हो गए, तो ब्राह्मणी दोनों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास पहुंची।
ऋषि शांडिल्य अपने तपोबल से बालकों की जानकारी इक्कठ्ठा कर बोले-ये दोनों बालक विदर्भ राज के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनके पिता का राज-पाट छीन गया है। तब ब्राह्मणी ने पूछा-हे ऋषिवर इनका राज-पाट वापस कैसे लौटेगा? आप कोई उपाय बताएं। उस समय ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। कालांतर में ब्राह्मणी और राजकुमारों ने विधिवत प्रदोष व्रत किया। इस दौरान बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई, दोनों एक दूसरे को चाहने लगे। तब अंशुमती के पिता ने राजकुमार की सहमति से दोनों की शादी कर दी।
इसके बाद दोनों राजकुमार ने गंदर्भ सेना पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में अंशुमती के पिता ने राजुकमारों की मदद की थी। युद्ध में गंदर्भ नरेश की हार हुई। राजकुमारों को पुनः विदर्भ का राज मिल गया। तब राजकुमारों ने गरीब ब्राह्मणी को भी अपने दरबार में विशेष स्थान दिया। प्रदोष व्रत के पुण्य-प्रताप से ही राजुकमार को अपना राज पाट वापस मिला और ब्राम्हणी के दुःख और दूर हो गए।

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