क्या खास है तेलंगाना के रमप्पा मंदिर, जो विश्व धरोहर का दर्जा मिला
संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में तेलंगाना के ऐतिहासिक रुद्रेश्वर मंदिर को शामिल किया है
संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में तेलंगाना के ऐतिहासिक रुद्रेश्वर मंदिर को शामिल किया है. इस मंदिर का प्रचलित नाम रमप्पा मंदिर भी है. यह तेलंगाना के मुलुगू जिले में पालमपेट में स्थित है. सावन के पहले सोमवार के ठीक एक दिन पहले भारत के लोगों के लिए यह खुशखबरी आई. इस मंदिर का निर्माण 1213 एडी में किया गया था.
तेलंगाना में यह मंदिर तब बना जब वहां काकतीय वंश का साम्राज्य था और उसकी बागडोर रेचरला रुद्र संभालते थे. रुद्र काकतीय राजा गणपति देव के सेनापति थे. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित की गई और इसी के साथ देश-दुनिया के भक्तों ने रमप्पा मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू कर दी. इस मंदिर में पीठासीन देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं. इस मंदिर को रमप्पा मंदिर का नाम दिया गया. रमप्पा चूंकि इस मंदिर के शिल्पकार थे, इसलिए मंदिर का नामकरण उनके नाम पर कर दिया गया. बताया जाता है कि मंदिर में रमप्पा ने लगातार 40 साल तक काम किया था तब जाकर इसका भव्य निर्माण साकार हो पाया.
सबने दी बधाई
यूनेस्को की ओर से विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने बधाई और शुभकामनाएं दीं. तेलंगाना सरकार ने इसके लिए केंद्र सरकार के सहयोग की सराहना की. यह मंदिर 800 साल पुराना है और काकतीय वंश के राज में इसका निर्माण कराया गया था. केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने यूनेस्को से विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद अर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ASI की पूरी टीम को बधाई दी. रमप्पा मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल कराने में एएसआई टीम का बहुत बड़ा योगदान है. इसमें विदेश मंत्रालय ने भी बड़ी भूमिका निभाई है.
विशिष्ट शैली का इस्तेमाल
काकतीय के मंदिरों की एक विशिष्ट शैली, तकनीक और सजावट है जो काकतीय मूर्तिकार के प्रभाव को दिखाते हैं. रमप्पा मंदिर इसी का खास नमूना है जो काकतीय रचनात्मक प्रतिभा को प्रदर्शित करता है. यह मंदिर छह फीट ऊंचे तारे के आकार के मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों, खंबों और छतों को जटिल नक्काशी से सजाया गया है जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करता है. इस मंदिर में इंजीनियरिंग का सबसे अच्छी तकनीक का इस्तेमाल उस जमाने में किया गया. तैरती ईंटें और सैंड बॉक्स की बुनियाद पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है. पत्थर की मूर्तिकला और शिल्प का बेहतर सामंजस्य कर इस मंदिर को ऐतिहासिक बनाया गया.
मंदिर कला में अलग स्थान
मंदिर के निर्माण में किन चीजों का इस्तेमाल होगा और निर्माण में किस मंदिर कला का चयन किया जाएगा, इसमें रुद्रेश्वर मंदिर एक अलग स्थान रखता है. इस मंदिर को देखकर कहा जा सकता है कि यह इंसानी रचनात्मकता की उत्कृष्ट कृतियों में एक है. शिल्प कला और सजावट का इस्तेमाल इस ढंग से किया गया कि उस समय की प्रथाओं के मुताबिक हो. साथ ही जिसकी अपील वैश्विक स्तर पर हो. मंदिर परिसर इस ढंग से बनाया गया है जो उस खास इलाके को प्रदर्शित करता हो. दक्षिण भारत की कलाओं को प्रदर्शित करने वाली हर तकनीक का इस्तेमाल किया गया.