आज विश्वकर्मा जयंती है। भगवान विश्वकर्मा पूरे ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता हैं। पौराणिक काल में दुनिया के पहले इंजीनियर माने जाने वाने भगवान विश्वकर्मा की आज पूजा की जाती है। इस अवसर पर सभी कामगार वर्ग के लोग, कुशल, कारीगर और फैक्टरियों के मजदूर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। इस अवसर सभी कारखानों में मशीनों की पूजा की जाती है और हवन किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से कारोबार में वृद्धि होती है। कलियुग में भगवान विश्वकर्मा की पूजा सभी के लिए जरूरी मानी गई है।भगवान विश्वकर्मा वास्तुदेव तथा माता अंगिरसी की संतान हैं। वे शिल्पकारों और रचनाकारों के ईष्ट देव हैं। उन्होंने सृष्टि की रचना में ब्रह्मा जी की मदद की तथा पूरे संसार का मानचित्र बनाया था।
इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस के सचिव आचार्य कौशल वत्स से बनाया कि जिस समय सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करते है तभी भगवान विश्वकर्मा का जन्म माना जाता है। कन्या राशि की पहली किरण रविवार को दोपहर एक बजकर 30 मिनट से होगी। अतः आज कन्या संक्रांति के साथ ही विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त है। इसी के साथ इस दिन रवि योग भी बन रहा है। इन शुभ काल में की गई विश्वकर्मा पूजा परमफलदायी होगी।
कलियुग में भगवान विश्वकर्मा की पूजा इसलिए जरूरी मानी गई है कि क्योंकि आज के युग में हर व्यक्ति तकनीक से जुड़ा हुआ है। मोबाइल, टैब और लैपटॉप के बिना भी कोई काम संभव नहीं है। इसलिए विश्वकर्मा जयंती पर पूजा करना सभी के लिए आवश्यक है।
देवों के शिल्पी हैं विश्वकर्मा
देवों के शिल्पी, संसार के पहले इंजीनियर, वास्तुकला के ज्ञाता भगवान विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र के भी प्रकांड विद्वान भी हैं। विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा देवताओं के काष्ठशिल्पी माने जाते हैं। उनके लिए वर्धकी यानि काष्ठशिल्पी शब्द का उपयोग हुआ है। भगवान विश्वकर्मा को कई प्रसिद्ध नगरों के निर्माता के रुप में देखा जाता है। कहा जाता है कि स्वर्ग लोक से लेकर रावण के पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।
यह भी कहा जाता है कि विश्वकर्मा जी ने कई ऐसे दुर्लभ चीजों का निर्माण किया है, जिसका आज तक सानी नहीं है। इंद्र का स्वर्गलोक, रावण की सोने की लंका, श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी के अलावा भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, यमराज का कालदंड का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने ही किया था। माना जाता है कि पांडवों के इंद्रप्रस्थ में माया सभा भी भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाई।
वास्तदेव के पुत्र हैं विश्वकर्मा
शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा वास्तुदेव के पुत्र हैं। विश्वकर्मा जी के पांच अवतार हैं। विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्मा और भृगुवंशी विश्वकर्मा हैं। उनके पांच पुत्र मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ हैं। इनके अलावा तीन पुत्रों जय, विजय और सिद्धार्थ का भी वर्णन मिलता है, ये सभी शिल्पीशास्त्र और वास्तुशास्त्र के विद्वान थे।