Vastu Shastra वास्तु शास्त्र: भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत अत्यंत मंगलकारी है। इस व्रत में शिव परिवार का पूजन किया जाता है। प्रदोष काल में की जाने वाली शिव साधना भाग्योदय करती है। सूर्यास्त और रात्रि के संधिकाल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष काल में देवों के देव महादेव कैलाश पर्वत में प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। मान्यता यह भी है कि एक बार चंद्र देवता को क्षय रोग हो गया और भगवान शिव ने उन्हें इस रोग से जिस दिन मुक्ति दिलाई वह त्रयोदशी तिथि यानि प्रदोष तिथि थी।
प्रदोष व्रत उन लोगों को विशेष रूप से करना चाहिए जो कर्ज में डूबे हुए हैं या भूमि, भवन, संपत्ति खरीदना चाहते हैं। प्रदोषकाल में की जाने वाली पूजा का फल दोगुना हो जाता है। प्रदोष व्रत में पूरे दिन केसर का तिलक मस्तक, कंठ पर लगाएं। इस दिन पूजा स्थल पर मंगल यंत्र की स्थापना करें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। प्रदोषकाल में भगवान शिव का अभिषेक पूजन करें। प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें, फलों और मिष्ठान का नैवेद्य लगाएं। प्रदोष काल में भगवान शिव का hexadecimal पूजन और कथा वाचन करें।
भगवान शिव की आरती और प्रसाद वितरण करने के बाद सबसे अंत में स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। प्रदोष तिथि पर शाम के समय पांच अलग-अलग रंग लेकर, शिव मंदिर में जाएं और उन रंगों से सुंदर रंगोली बनाएं। रंगोली में बीच घी का दीपक जलाएं और हाथ जोड़कर भगवान शिव का ध्यान करें। ऐसा करने से उन्नति के अवसर मिलेंगे। प्रदोष तिथि पर शिव मंदिर में जाकर सूखा नारियल अर्पित करें। ऐसा करने से अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। दांपत्य जीवन में मधुरता के लिए इस दिन भगवान शिव को दही में शहद मिलाकर भोग लगाएं। इस दिन ऊं नम: शिवाय का जाप करते रहें। ऐसा करने से मानसिक शांति प्राप्त होगी।