पूजा के दौरान इन धातु के पात्रों का प्रयोग अशुभ माना जाता है, जानिए वजह

धर्मग्रंथों के अनुसार सोने को सर्वश्रेष्ठ धातु माना जाता है. इसी कारण से देवी-देवताओं की मूर्तियां, आभूषण आदि सोने से बनाये जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस धातु के बर्तन पूजा में उपयोग में लाने चाहिए.

Update: 2021-11-13 04:42 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भगवान की पूजा अर्चना करने के लिए भक्त हर उस चीज का ही उपयोग करते हैं, जो शुभ होता है. ऐसे में भगवान की पूजा में कई प्रकार के बर्तनों का भी उपयोग किया जाता है. हांलाकि कई बार हमको नहीं पता होता है कि हम जिस धातु के बर्तन पूजा में उपयोग में कर रहे हैं वो ठीक है कि नहीं. यही कारण है कि बर्तन किस धातु के होने चाहिए इस पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है.

कुछ ऐसी धातुओं के बर्तन है जिनको पूजा के लिए अशुभ माना जाता है. इन बर्तनों से भगवान की पूजा करना अशुभ माना जाता है. आपको बता दें कि सोना, चांदी, पीतल और तांबे के बर्तनों का उपयोग शुभ माना जाता है. आइए जानते हैं कि आपको पूजा आराधना में किस धातु के बर्तनों का ही उपयोग करना चाहिए.
देवताओं को तांबा है अत्यन्त प्रिय
कहते हैं कि देवताओं को तांबा बहुत प्रिय होता है, इसको लेकर एक श्लोग का भी उल्लेख किया गया है-
"तत्ताम्रभाजने मह्म दीयते यत्सुपुष्कलम् ।
अतुला तेन मे प्रीतिर्भूमे जानीहि सुव्रते।।
माँगल्यम् च पवित्रं च ताम्रनतेन् प्रियं मम ।
एवं ताम्रं समुतपन्नमिति मे रोचते हि तत्।
दीक्षितैर्वै पद्यार्ध्यादौ च दीयते।
(वराहपुराण 129|41-42, 51|52)
इस श्लोक का अर्थ है कि तांबा मंगलस्वरूप ,पवित्र और भगवान को बहुत ही प्रिय भी है.
आपको बता दें कि आप तांबे के पात्र में रखकर जो भी वस्तु भगवान को अर्पित करते हैं, उससे भगवान सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं. यही कारण है कि तांबे के बर्तन को सबसे ज्यादा पूजा में उपयोग किया जाता है. अगर आप ताबें के बर्तन से सूर्य देव को जल चढ़ाते हैं तो भगवान की कृपा मिलती है.
तांबा चांदी और सोना की तुलना में सस्ता होने के साथ ही शुभ भी होता है. कहते हैं कि लोहे के बर्तन में जंग लग जाती है, जिससे वो खराब हो जाते हैं, शास्त्रों के अनुसार इसलिए पूजा पाठ के बर्तन शुद्ध ही रहते हैं.
क्यों अशुभ है चांदी के पात्र
चांदी के पात्रों से भी अभिषेक पूजन किया जाता है, लेकिन तांबे के पात्र से दुग्धाभिषेक वर्जित है. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि चांदी, चंद्र देव का प्रतिनिधित्व करती है.जो मनुष्य को भगवान चंद्र देव का आशीर्वाद स्वरूप शीतलता, सुख-शांति प्राप्त होती है. लेकिन देवकार्य में इसको शुभ नहीं माना जाता है.
मत्स्यपुराण में कहा गया है कि "शिवनेत्रोद्ववं यस्मात् तस्मात् पितृवल्लभम्।अमंगलं तद् यत्नेन देवकार्येषु वर्जयेत्।।जिसका अर्थ है कि चांदी पितरों को तो परमप्रिय है, पर देवकार्य में इसे अशुभ माना गया है.
इन पात्रों का न करें इस्तेमाल
हालांकि शनिदेव की पूजा के लिए तांबे के बर्तनों की जगह लोगे के बर्तन से ही पूजा करना चाहिए. पूजा में लोहा, स्टील और एल्युमीनियम के धातु के वर्तनों को उपयोग नहीं करना चाहिए, अपवित्र धातु मानी जाती हैं.


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