कल है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस व्रत को जुउतिया और जितिया व्रत भी कहते हैं। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और उज्जलव भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस व्रत को जुउतिया और जितिया व्रत भी कहते हैं। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और उज्जलव भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस साल जितिया व्रत 18 सितंबर को पड़ा है। जानिए जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पारण का समय।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2022 की सही तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जितिया व्रत रखा जाता है। इस बार अष्टमी तिथि 17 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 14 मिनट से लेकर अगले दिन 18 सितंबर को शाम 04 बजकर 32 मिनट तक है। ऐसे में उदयातिथि 18 सितंबर को है। इसी कारण इस दिन ही व्रत रखा जाएगी और 19 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त
सिद्धि योग- 18 सितंबर सुबह 06 बकर 34 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 40 मिनट तक
जीवित्पुत्रिका व्रत का लाभ और अमृत मुहूर्त- सुबह 09 बजकर 11 मिनट से दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक
उत्तम मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 47 मिनट से दोपहर 03 बजकर 19 मिनट तक
जीवित्पुत्रिका व्रत पारण का समय
19 सितंबर को जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण किया जाएगा। पारण का सबसे अमृत मुहूर्त- सुबह 06 बजकर 08 मिनट से 07 बजकर 40 मिनट तक है।
पारण का शुभ उत्तम मुहूर्त- सुबह 09 बजकर 11 मिनट से सुबह 10 बजकर 43 मिनट तक
जीवित्पुत्रिका व्रत 2022 की पूजा विधि
इस दिन माताएं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि करके साफ-सूथरे वस्त्र धारण कर लें।
इसके बाद व्रत का संकल्प लें और पारण करने तक निर्जला व्रत रखें।
इसके बाद शाम के समय प्रदोष काल में जीमूतवाहन की मूर्ति कुश से बना लें। फिर एक जलपात्र में उसे स्थापित करें ।
इसके बाद उनको लाल और पीली रुई अर्पित करें।
वंश की सुरक्षा एवं वृद्धि के लिए जीमूतवाहन को धूप, दीप, बांस के पत्ते, अक्षत, फूल, माला, सरसों का तेल और खल्ली अर्पित करें।
अब गाय के गोबर और मिट्टी से मादा सियार और मादा चील की मूर्ति बनाएं।
उनको सिंदूर, खीरा और भींगे हुए केराव चढाएं।
चील और सियारिन को चूड़ा-दही भी अर्पित करें।
इसके बाद चिल्हो-सियारो की कथा या गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन और पक्षीराज गरुड़ की कथा सुनें।
फिर पूजा के अंत में आरती करें।
पूजा मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
अगले दिन प्रात: काल स्नान आदि करके दैनिक पूजा करें। फिर सूर्योदय के बाद पारण करके जितिया व्रत खोल लें।