कल है अचला एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

कल अचला एकादशी है। चला एकादशी का वर्णन महाभारत, नारद और भविष्यपुराण में भी बताया गया है। इसे अपरा एकादशी भी कहते हैं।

Update: 2022-05-25 10:08 GMT
कल है अचला एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
  • whatsapp icon

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |   कल अचला एकादशी है। चला एकादशी का वर्णन महाभारत, नारद और भविष्यपुराण में भी बताया गया है। इसे अपरा एकादशी भी कहते हैं। मान्यता के मुताबिक अचला एकादशी का व्रत और इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से जाने-अनजाने में हुए सभी पाप खत्म हो जाते हैं और साथ ही सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

इस बार अचला एकादशी पर एक साथ दो-दो शुभ संयोग बन रहे हैं। इचला एकादशी पर इस साल आयुष्मान और गजकेसरी नाम के दो शुभ योग भी बन रहे हैं। इन योगों के होने से इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ गया है।
अपरा एकादशी सुभ मुहूर्त 
ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी तिथि मई 25, बुध‌वार की सुबह 10:32 से शुरू होगी जो अगले 26 मई, गुरुवार की सुबह लगभग 10:54 तक रहेगी।
अचला एकादसी पूजा विधि 
- प्रात: काल में पवित्र जल में स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें और अपनी इच्छा अनुसार व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें।
- भगवान को रक्षा सूत्र बांधे। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। भगवान की पंचोपचार (कुंकुम, चावल, रोली, अबीर, गुलाल) पूजा करें।
- इस दिन शंख और घंटी की पूजा भी जरूर करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है।
- भगवान विष्णु को शुद्धतापूर्वक बनाई हुई चीजों का भोग लगाएं।
- इसके बाद विधिपूर्वक पूर्वक दिन भर उपवास करें।
- रात को जागरण करें।
-व्रत के अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें और उसके बाद स्वयं भोजन करें।
अचला एकादशी व्रत की कथा 
किसी समय एक देश में महिध्वज नामक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई ब्रजध्वज बड़ा ही अन्यायी और क्रूर था। वह अपने बड़े भाई को अपना दुश्मन समझता था। एक दिन ब्रजध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी व उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे दबा दिया। इसके बाद राजा की आत्मा उस पीपल में वास करने लगी। एक दिन धौम्य ऋषि उस पेड़ के नीचे से निकले। उन्होंने अपेन तपोबल से जान लिया कि इस पेड़ पर राजा महिध्वज की आत्मा का निवास है। ऋषि ने राजा के प्रेत को पीपल से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। साथ ही प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत रखने से राजा का प्रेत दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया।

























Similar News