आज मंगलवार के दिन करें हनुमान साठिका का पाठ, दूर होंगे सभी संकट

मंगलवार का दिन मारुतिनंदन हनुमान जी को समर्पित है। मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म मंगलवार के दिन हुआ था।

Update: 2022-01-11 02:02 GMT

मंगलवार का दिन मारुतिनंदन हनुमान जी को समर्पित है। मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म मंगलवार के दिन हुआ था। इसलिए ये दिन हनुमान जी का दिन माना जाता है। हनुमान जी को मंगल ग्रह का कारक देवता भी माना जाता है। मंगलवार को हनुमान जी का पूजन करने से मंगल ग्रह के दोष समाप्त होते हैं तथा मंगल ग्रह को मजबूत किया जा सकता है। इस दिन हनुमान जी का पूजन करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और इसलिए उन्हें संकटमोचक भी कहा जाता है। मंगलवार के दिन हनुमान जी को लाल रंग के फूल और घी सिंदूर का लेप अर्पित करना चाहिए।

जिन लोगों के जीवन में किसी भी तरह का संकट या बाधाएं हो उन्हें इस दिन हनुमान मंदिर में चमेली के तेल का दिया जला कर हनुमान साठिका का पाठ करना चाहिए। हनुमान साठिका पाठ का करने से जीवन के सभी कष्ट और संकट दूर होते हैं। मंगल ग्रह संबंधी दोषों का निराकरण होता है और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

हनुमान साठिका

॥ चौपाइयां ॥

जय जय जय हनुमान अडंगी ।


महावीर विक्रम बजरंगी ॥

जय कपीश जय पवन कुमारा ।

जय जगबन्दन सील अगारा ॥

जय आदित्य अमर अबिकारी ।

अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥

अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा ।

जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥

बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा ।

सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥

कपि के डर गढ़ लंक सकानी ।

छूटे बंध देवतन जानी ॥

ऋषि समूह निकट चलि आये ।

पवन तनय के पद सिर नाये॥


बार-बार अस्तुति करि नाना ।

निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।

दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥

सुनत बचन कपि मन हर्षाना ।

रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥

रथ समेत कपि कीन्ह अहारा ।

सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥

विनय तुम्हार करै अकुलाना ।

तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥

सकल लोक वृतान्त सुनावा ।

चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥


कहा बहोरि सुनहु बलसीला ।

रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥

तब तुम उन्हकर करेहू सहाई ।

अबहिं बसहु कानन में जाई ॥

असकहि विधि निजलोक सिधारा ।

मिले सखा संग पवन कुमारा ॥

खेलैं खेल महा तरु तोरैं ।

ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं ॥

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई ।

गिरि समेत पातालहिं जाई ॥

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।

निरखति रहे राम मगु आसा ॥


मिले राम तहं पवन कुमारा ।

अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥

मनि मुंदरी रघुपति सों पाई ।

सीता खोज चले सिरु नाई ॥

सतयोजन जलनिधि विस्तारा ।

अगम अपार देवतन हारा ॥

जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा ।

लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥

सीता चरण सीस तिन्ह नाये ।

अजर अमर के आसिस पाये ॥

रहे दनुज उपवन रखवारी ।

एक से एक महाभट भारी ॥

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा ।


दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥

सिया बोध दै पुनि फिर आये ।

रामचन्द्र के पद सिर नाये ॥

मेरु उपारि आप छिन माहीं ।

बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥

लछमन शक्ति लागी उर जबहीं ।

राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥

भवन समेत सुषेन लै आये ।

तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥

मग महं कालनेमि कहं मारा ।

अमित सुभट निसिचर संहारा ॥

आनि संजीवन गिरि समेता ।


धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥

फनपति केर सोक हरि लीन्हा ।

वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥

अहिरावण हरि अनुज समेता ।

लै गयो तहां पाताल निकेता ॥

जहां रहे देवि अस्थाना ।

दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥

पवनतनय प्रभु कीन गुहारी ।

कटक समेत निसाचर मारी ॥

रीछ कीसपति सबै बहोरी ।

राम लषन कीने यक ठोरी ॥

सब देवतन की बन्दि छुड़ाये ।


सो कीरति मुनि नारद गाये ॥

अछयकुमार दनुज बलवाना ।

कालकेतु कहं सब जग जाना ॥

कुम्भकरण रावण का भाई ।

ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥

मेघनाद पर शक्ति मारा ।

पवन तनय तब सो बरियारा ॥

रहा तनय नारान्तक जाना ।

पल में हते ताहि हनुमाना ॥

जहं लगि भान दनुज कर पावा ।

पवन तनय सब मारि नसावा ॥

जय मारुत सुत जय अनुकूला ।

नाम कृसानु सोक सम तूला ॥

जहं जीवन के संकट होई ।

रवि तम सम सो संकट खोई ॥

बन्दि परै सुमिरै हनुमाना ।

संकट कटै धरै जो ध्याना ॥

जाको बांध बामपद दीन्हा ।

मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥

सो भुजबल का कीन कृपाला ।

अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥

आरत हरन नाम हनुमाना ।

सादर सुरपति कीन बखाना ॥

संकट रहै न एक रती को ।

ध्यान धरै हनुमान जती को ॥

धावहु देखि दीनता मोरी ।

कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु ।

आतुर आइ दुसइ दुख हरहु ॥

राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया ।

जवन गुहार लाग सिय जाया ॥

यश तुम्हार सकल जग जाना ।

भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥

यह बन्धन कर केतिक बाता ।

नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥

करौ कृपा जय जय जग स्वामी ।

बार अनेक नमामि नमामी ॥

भौमवार कर होम विधाना ।

धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥

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