आज है शनि प्रदोष का विशिष्ट संयोग, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
हिंदी माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का विधान है। ये व्रत विशेष रूप से भगवान शिव के पूजन को समर्पित है।
हिंदी माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का विधान है। ये व्रत विशेष रूप से भगवान शिव के पूजन को समर्पित है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 18 सितंबर, दिन शनिवार को पड़ रहा है। त्रयोदशी तिथि शनिवार को पड़ने के कारण इस बार शनि प्रदोष का विशेष संयोग बन रहा है। शनि देव स्वयं भगवान शिव के भक्त हैं, इसलिए शनि प्रदोष के दिन शिव और शनि का पूजन करने से शनिदोष से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं शनि प्रदोष के पूजन की तिथि, मुहूर्त और पूजन विधि...
शनि प्रदोष की तिथि और मुहूर्त
पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 सितंबर को सुबह 06 बजकर 54 मिनट से शुरू हो कर 19 सितंबर को प्रातः05 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। इस आधार पर प्रदोष का व्रत 18 सितंबर को रखा जाएगा। इस दिन शनिवार पड़ने के कारण ये शनि प्रदोष के संयोग का निर्माण कर रहा है। जो कि कुण्डली में व्याप्त शनिदोष से मुक्ति और संतान प्राप्ति के लिए विशिष्ट माना गया है। पूजन के लिए प्रदोष काल सर्वोत्म होता है, जो कि सूर्यास्त के 45 मिनट पहले से 45 मिनट बाद तक माना जाता है।
शनि प्रदोष की पूजा विधि
शनि प्रदोष के दिन प्रातः कल उठ कर स्नान आदि से निवृत्त हो लें। इसके बाद शिव लिंग का जल और काले तिल से अभिषेक करें और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिन भर फलाहार व्रत करते हुए, प्रदोष काल में भगवान शिव का पूजन करें। प्रदोष व्रत में गृहस्थों को भगवान शिव के साथ माता पार्वती का भी पूजन करना चाहिए। शिव पार्वती को आसन पर स्थापित कर धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद शिव पार्वती के मंत्रों का जाप कर उनकी आरती करनी चाहिए। प्रदोष के व्रत में रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। शनि प्रदोष के संयोग पर शिवलिंग पर सरसों और काला तिल चढ़ाना चाहिए एवं इस दिन शिव मंदिर में सरसों के तेल का दिया जला कर शनि चालीसा का पाठ करें। ऐसा करने से आपकी कुण्डली में व्याप्त शनिदोष समाप्त हो जाएगा।