आज है साल का आखिरी प्रदोष व्रत.....जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त

आज पौष माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है और साल 2021 का आखिरी प्रदोष व्रत है. शुक्रवार होने की वजह से इस व्रत को शुक्र प्रदोष के नाम से जाना जाता है. यहां जानिए प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त, पूजा​ विधि से लेकर अन्य जरूरी जानकारी.

Update: 2021-12-31 05:16 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर माह की त्रयोदशी ​तिथि महादेव को समर्पित होती है. इस दिन प्रदोष का व्रत रखा जाता है. एकादशी की तरह प्रदोष का व्रत भी महीने में दो बार आता है. सप्ताह के दिन के हिसाब से इसके नाम और महत्व होते हैं. इस व्रत के दौरान महादेव का पूजन प्रदोष काल में किया जाता है, इसलिए इस व्रत को प्रदोष के नाम से जाना जाता है.

आज पौष माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है और साल 2021 का आखिरी दिन भी हैं. इस तरह आज साल 2021 का आखिरी प्रदोष व्रत रखा जाएगा. शुक्रवार होने की वजह से इस व्रत को शुक्र प्रदोष के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि शुक्र प्रदोष व्रत रखने से जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त होती है और धन धान्य की परिवार में कभी कोई कमी नहीं रहती. जानिए साल के अंतिम प्रदोष व्रत से जुड़ी खास बातें.
सर्वार्थ सिद्धि योग में होगी पूजा
हिंदू पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि 31 दिसंबर को सुबह 10:39 बजे से शुरू होकर एक जनवरी 2022 को सुबह 07:17 तक रहेगी. इस दौरान सुबह 07 बजकर 14 मिनट से रात 10 बजकर 04 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा. इस योग को अत्यंत शुभ माना जाता है. सर्वार्थ सिद्धि योग सभी कार्यों को सिद्ध करने वाला होता है. इस तरह प्रदोष व्रत की पूजा भी सर्वार्थ सिद्धि योग में होगी. ऐसे में आप अपनी इच्छित कामना को प्रभु से सच्चे मन से मांगें, तो वो अवश्य पूरी होगी. शिव पूजा का मुहूर्त शाम को 05:35 बजे से रात 08:19 बजे तक रहेगा.
क्यों होती है प्रदोष काल में महादेव की पूजा
सूर्यास्त से डेढ़ घंटे के बीच के समय को प्रदोष काल कहा जाता है. माना जाता है कि समुद्रमंथन के दौरान विष पीने की घटना त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल के समय ही घटी थी. इसके बाद सभी देवी देवताओं ने महादेव का आभार व्य​क्त किया था और प्रदोष काल में ही उनकी पूजा की थी. इस पूजा से महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए थे और खुशी के कारण उन्होंने तांडव नृत्य किया था. तब से त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल महादेव को अत्यंत प्रिय हो गया और इस दिन महादेव की कृपा पाने के लिए लोग त्रयोदशी तिथि को उनका व्रत करने लगे और इस व्रत को प्रदोष के नाम से जाना जाने लगा.
पूजा विधि
सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर व्रत रखें. प्रदोष काल में महादेव का पंचामृत से अभिषेक करें. उन्हें बेल पत्र, धतूरा, धूप, दीप, चंदन, पुष्प, अक्षत आदि ​अर्पित करें और प्रसाद चढ़ाएं. इसके बाद भगवान के समक्ष शुक्र प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें. भगवान के मंत्र का जाप करें और आखिर में आरती करें और अपनी भूल चूक की क्षमायाचना करें.


शुक्र प्रदोष व्रत कथा
एक नगर में तीन मित्र रहते थे. उनमें से एक राजकुमार, दूसरा ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र था. राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे, धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकिन गौना शेष था. एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे. ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है. धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्‍नी को लाने का निश्‍चय कर लिया. तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं, ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता, लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया.
ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो ज़िद पर अड़ा रहा और कन्या के माता पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी. विदाई के बाद पति-पत्‍नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई. दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे. कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकुओं से पड़ा. जो उनका धन लूटकर ले गए. दोनों घर पहुंचे. वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया. उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा. जब ब्राह्मण कुमार को ये खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. साथ ही कहा कि इसे पत्‍नी सहित वापस ससुराल भेज दें. धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया जहां उसकी हालत ठीक होती गई. इसके बाद शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से परिवार के सभी घोर कष्ट दूर हो गए.


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