आज हैं मदन द्वादशी जानें इसकी पौराणिक क​था व्रत कथा के बारे में

मदन द्वादशी व्रत चैत्र शुक्ल द्वादशी को रखा जाता है

Update: 2022-04-13 02:59 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मदन द्वादशी व्रत चैत्र शुक्ल द्वादशी को रखा जाता है, जो आज है. आज के दिन कामदेव की पूजा की जाती है. कामदेव के आशीर्वाद से पुत्र के खोने का दुख दूर हो जाता है, कष्ट मिटते हैं और सुयोग्य पुत्र की भी प्राप्ति होती है. इससे जुड़ी पौराणिक क​था दैत्य माता दिति से जुड़ी है, जिसे जानकर आपको इस व्रत का महत्व भी पता चलेगा. आइए जानते हैं मदन द्वादशी व्रत कथा के बारे में.

मदन द्वादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं ने युद्ध में सभी दैत्यों का अंत कर दिया, जिससे दैत्य वंश पर संकट छा गया. दैत्य कुल के संहार से दुखी माता दिति मानसिक तौर पर बहुत कष्ट में थीं. उनका यह कष्ट असहनीय हो गया था क्योंकि उनके सभी पुत्र मारे गए थे. इस कष्ट से मुक्त होने के लिए वह पृथ्वी पर आईं और सरस्वती नदी के तट पर आसन लगाकर बैठ गईं. उसके पश्चात अपने पति कश्यप ऋषि का आह्वान करने लगीं.
फिर उन्होंने करीब 100 साल तक कठोर तप किया, फिर भी पुत्रों के शोक से उनका मन व्याकुल रहा. उनको शांति और मुक्ति नहीं मिली. तब उन्होंन ऋषि मुनियों से अपनी इच्छापूर्ति का उपाय पूछा. ऋषियों ने सुझाव दिया कि मदन द्वादशी व्रत विधिपूर्वक करो. ऋषियों के बताए विधान के अनुसार माता दिति ने मदन द्वादशी का व्रत रखा.
उसके पश्चात उनके पति कश्यप ऋषि उनके समुख प्रकट हो गए. उन्होंने अपने तपोबल से दिति को फिर एक सुंदर युवती बना दिया. फिर उनसे वर मांगने को कहा. दिति ने सुयोग्य पुत्र की इच्छा प्रकट की, जो इंद्र समेत सभी देवताओं का विनाश करने में सक्ष्म हो.
तब महर्षि कश्यप ने इसके लिए उनको एक और अनुष्ठान करने का सुझाव दिया. इसके पश्चात वे गर्भवती हो गईं. उधर जब इंद्र देव को इस घटना के बारे में जानकारी हुई, तो वे दिति के गर्भ को खत्म करने की कोशिश करने लगे.
एक दिन इंद्र ने वज्र से गर्भस्थ शिशु पर हमला कर दिया, जिससे वह शिशु अमरत्व प्राप्त करके 49 शिशुओं में बदल गया. इंद्र देव अपने कृत्य पर शर्मिंदा हो गए और माता दिति से क्षमा मांगी. साथ ही कहा कि ये 49 शिशु मरुद्गण हैं, ये देवों के समान हैं. उन्होंने यज्ञों में उनके लिए समुचित अंश की व्यवस्था की.
इस प्रकार से माता दिति को मदन द्वादशी का व्रत करने से पुत्रों के शोक से मुक्ति मिली और बाद में पुत्र रत्न की भी प्राप्ति हुई.


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