जन्माष्टमी के बाद आज है दही हांडी उत्सव, जानें इसके पीछे का महत्व

जन्माष्टमी का पर्व कल 30 ​अगस्त को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। भजन-कीर्तन, मंत्रोच्चार आदि के बीच बाल गोपाल श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया।

Update: 2021-08-31 04:32 GMT

जन्माष्टमी का पर्व कल 30 ​अगस्त को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। भजन-कीर्तन, मंत्रोच्चार आदि के बीच बाल गोपाल श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। जन्माष्टमी के अगले दिन यानी आज दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी और नवमी के दिन दही ​हांडी का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। दही हांडी का उत्सव भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की लीलाओं से जुड़ा हुआ है। दही ​हांडी का उत्सव मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गोवा में होता है, लेकिन अब देश के कई स्थानों पर भी इसका आयोजन होने लगा है। दही ​हांडी उत्सव को महाराष्ट्र में गोपालकाला के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण दही हांडी उत्सव सांकेतिक रूप में ही मनाया जाएगा, उसमें भी कोरोना गाइडलाइंस का पालन करना होगा। आइए जानते हैं कि दही हांडी उत्सव क्यों मनाते हैं?

दही हांडी उत्सव क्यों मनाते हैं?
भगवान श्रीकृष्ण को बचपन में दूध, दही और मक्खन बहुत प्रिय था। वह गोकुल में अपने बाल सखाओं और गोपों के साथ छिपकर गोपियों के घरों में घुस जाते थे। फिर उनका सारा माखन, दूध, दही आदि चट कर जाते थे। माखन, दूध आदि कृष्ण और उनके सखाओं को न मिले, इसलिए गोपियां उनको मटके में रखकर रस्सी की मदद से ऊंचाई पर लटका देती थीं।
लेकिन बाल गोपाल श्रीकृष्ण कहां मानने वाले थे। उनकी नजरों से कुछ नहीं बचता था। वे अपने सखाओं के साथ मिलकर मानव पिरामिड बना लेते थे और ऊंचाई पर रखे माखन और दूध चट कर देते थे। ऊंचाई से माखन उतारने पर कई बार मटके फूट जाते थे। तब गोपियां श्रीकृष्ण की शिकायत माता यशोदा से करती थीं।
भगवान श्रीकृष्ण की इसी बाल लीला से प्रेरित होकर जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी उत्सव मनाया जाने लगा। इसमें एक हांडी में दही भरकर उसे रस्सी की मदद से काफी ऊंचाई पर लटका दिया जाता है। युवाओं की अलग अलग टोलियां मानव पिरामिड बनाकर उस दही हांडी को फोड़ने का प्रयास करती हैं। इन टोलियों के युवाओं को गोविंदा कहा जाता है। जो दल सबसे पहले उस दही हांडी को फोड़ देता है, उसे पुरस्कार दिया जाता है।

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