आज है हरि-हर पूजा की बैकुंठ चतुर्दशी, जानें शुभ मुहूर्त और विधि

बैकुंठ चतुर्दशी का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन हरि और हर का मिलन होता है। इस दिन हरि अर्थात भगवान विष्णु और हर अर्थात भगवान शिव का एक साथ पूजन करने का विधान है।

Update: 2021-11-17 03:39 GMT

बैकुंठ चतुर्दशी का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन हरि और हर का मिलन होता है। इस दिन हरि अर्थात भगवान विष्णु और हर अर्थात भगवान शिव का एक साथ पूजन करने का विधान है। मान्यता है कि चतुर्मास तक सृष्टि का कार्य संभालने के बाद भगवान शिव बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विष्णु जी को उनका कार्य पुनः प्रदान करते हैं।पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 17 नवंबर, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। पंचांग गणना के अनुसार इसकी सही तिथि को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति है। आइए जानते हैं बैकुंठ चतुर्दशी की सही तिथि, पूजा का मुहूर्त और विधि.....

बैकुंठ चतुर्दशी की तिथि और मुहूर्त
बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि देवोत्थान एकादशी के बाद इस दिन श्री हरि विष्णु योग निद्रा से जाग कर भगवान शिव से मिलने जाते हैं। पंचांग गणना में मतभेद के कारण बैकुंठ चतुर्दशी की तिथि को लेकर लोगों में भ्रम की स्थति है। लेकिन ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 17 नवंबर, दिन बुधवार को प्रातः 09 बजे 50 मिनट से होगा, जिसका समापन 18 नवंबर को दोपहर 12.00 बजे होगा। बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक पूर्णिमा या देवदीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है।
बैकुंठ चतुर्दशी की पूजन विधि
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन हरि- हर अर्थात भगवान शिव और विष्णु का पूजन एक साथ करने का विधान है। इस दिन विशेष कर वाराणसी, उज्जैन और द्वारिका धामों में पूजन अर्चन होता है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नानदि से निवृत्त होकर भगवान शिव और विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान को जल,अक्षत, धूप, दीप,फूल, फल आदि समर्पित करना चाहिए। इस दिन पूजन में भगवान शिव को तुलसी दल और विष्णु जी को बेल पत्र चढ़ाने का विधान है। इसके बाद मंत्र और स्तुतियों से दोनों को पूजन करना चाहिए।


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