Dev Uthani Ekadashi पर विशेष फलों की प्राप्ति के लिए करें इस कथा का पाठ

Update: 2024-11-12 11:23 GMT
Dev Uthani Ekadashi ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन एकादशी व्रत को बेहद ही खास माना जाता है जो कि साल में 24 बार पड़ता है जिसमें कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को बेहद ही महत्वपूर्ण बताया गया है जो कि देवउठनी एकादशी के नाम से जानी जाती है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना का विधान होता है देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु पूरे चार माह की
निद्रा के बाद जागते हैं।
 प्रभु के जागने के बाद एक बार फिर से सभी शुभ कार्यों का आरंभ हो जाता है। इस साल देवउठनी एकादशी 12 नवंबर यानी आज मनाया जा रहा है इस दिन पूजा पाठ और व्रत के दौरान देवउठनी एकादशी की व्रत कथा का पाठ जरूर करें। ऐसा करने से सारी मनोकामना पूरी हो जाती है साथ ही भाग्य का भी भरपूर साथ मिलता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं देवउठनी एकादशी की व्रत कथा।
देवउठनी एकादशी की व्रत कथा—
देवउठनी एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा मिलती है. इस कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में एक राजा रहता था. उस राज्य के सभी लोद विधिवत एकादशी का व्रत रखते थे और पूजा करते थे. एकादशी के दिन किसी भी जानवर, पक्षी या पशु को अन्न नहीं दिया जाता था. उस नगर के राजा के दरबार में एक बाहरी व्यक्ति एक नौकरी पाने के लिए आया. तब राजा ने कहा कि काम तो मिलेगा लेकिन हर महीने दो दिन एकादशी व्रत पर अन्न नहीं मिलेगा.
 नौकरी मिलने की खुशी पर उस व्यक्ति ने राजा की शर्त मान ली. उसे अगले महीने एकादशी के व्रत पर अन्न नहीं दिया गया. व्रत में उसे केवल फलाहार दिया गया था लेकिव उसकी भूख नहीं मिटी जिससे वह व्यक्ति चिंतित हो गया. वह राजा के दरबार में पहुंचा और उन्हें बताया कि फल खाने से उसका पेट नहीं भरेगा. वह अन्न के बिना मर जाएगा. उसने राजा से अन्न के लिए प्रार्थना की.
इस पर राजा ने कहा कि आपको पहले ही बताया गया था कि एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा. लेकिन उस व्यक्ति ने फिर से अन्न पाने की विनती की. उसकी हालत को समझते हुए राजा ने उसे भोजन देने का आदेश दिया. उसे दाल, चावल और आटा दिया गया था. फिर उस व्यक्ति नदी के किनारे स्नान करके भोजन बनाया. जब भोजन बन गया, तो उसने भगवान विष्णु को आमंत्रण देते हुए कहा कि श्रीहरि भोजन तैयार है, आइए आप सबसे पहले इसे खाइए.
आमंत्रण पाकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए. उसने अपने देवताओं के लिए भोजन निकाला और वे खाने लगे. फिर उस व्यक्ति ने भी भोजन किया और अपने काम पर चला गया. इसके बाद भगवान विष्णु भी वैकुंठ लौट आए. अगली एकादशी पर उसने राजा से दोगुना अन्न की मांग की. उसने बताया कि पिछली बार वह भूखा था क्योंकि उसके साथ भगवान ने भी भोजन किया था.
 उस व्यक्ति की यह बात सुनकर राजा आश्चर्यचकित हो गया. राजा ने कहा कि हमें विश्वास नहीं है कि भगवान ने भी आपके साथ खाना खाया है. राजा की इस बात पर व्यक्ति ने कहा कि आप स्वयं जाकर देख सकते हैं कि क्या यह सच है. फिर एकादशी के दिन उसे दोगुना अन्न दिया गया था. वह अन्न लेकर नदी के किनारे गया. उस दिन राजा भी एक पेड़ के पीछे छिपकर सब कुछ देख रहा था.
उस व्यक्ति ने पहले नदी में स्नान किया. फिर भोजन बनाया और भगवान विष्णु से कहा कि खाना तैयार है और आप इसे खा लें, लेकिन विष्णु जी नहीं आए. उस व्यक्ति ने श्रीहरि को कई बार बुलाया लेकिन वे नहीं आए. तब उसने कहा कि अगर आप नहीं आएंगे तो मैं नदी में कूदकर अपनी जान दे दूंगा. फिर भी श्रीहरि नहीं आए. तब वह नदी में छलांग लगाने के लिए आगे बढ़ा. तभी भगवान विष्णु प्रकट हुए और उसे कूदने से बचा लिया.
इसके बाद श्रीहरि विष्णु उसके साथ भोजन किया. फिर उसे अपने साथ वैकुंठ लेकर चले गए. यह देखकर राजा हैरान हो गया. अब राजा को समझ आ गया कि एकादशी व्रत को पवित्र मन और शुद्ध आचरण से करते हैं, तभी पूरा व्रत का लाभ मिलता है. उस दिन से राजा ने भी पवित्र मन से एकादशी व्रत किया और भगवान विष्णु पूजा की. जीवन के अंत में राजा के सभी पाप मिट गए और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई.
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