जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मन की एकाग्रता के लिए रात की साधना का महत्त्व है, क्योंकि रात में प्रकृति शांत होती है। दिन में सूर्य की किरणें और अन्य कोलाहल के कारण ब्रह्मांडीय तरंगों में रुकावट बनी रहती है और ध्यान नहीं लग पाता। इसी कारण शिवरात्रि, नवरात्र, होली, दीपावली आदि पर्वों पर रात में साधना की जाती है। नवरात्र साल में दो बार आते हैं – विक्रम संवत के पहले दिन, चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक चैत्र नवरात्र और छह महीने बाद, आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक शारदीय नवरात्र। इस दौरान ग्रहों के अद्भुत योग के कारण ब्रह्मांड दिव्य ऊर्जाओं से भर जाता है। इन ऊर्जाओं को अपने शरीर में अनुभव करने के लिए, नवरात्र में यज्ञ, भजन, पूजन, मंत्र जाप, ध्यान, त्राटक आदि साधनाएं की जाती हैं। इसके लिए साधक कमर-गर्दन सीधा कर, आंख बंदकर बैठ जाते हैं। रीढ़ को सीधा करके बैठने से हमारी तरफ ब्रह्मांडीय ऊर्जा आकर्षित होती है। अब साधक शक्ति मंत्रों का जाप करता है, जिससे रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में सुषुम्ना नाड़ी के भीतर ऊर्जा के अलग-अलग अनुभव होने लगते हैं। इसे कुंडलिनी जागरण कहते हैं। हर रात यह शक्ति ऊपर के चक्र को जगाने लगती है और अंतिम रात को शक्ति पूरी तरह जाग कर व्यक्ति को मुक्त भाव में ले आती है। कुंडलिनी जागरण ही हमारे भीतर देवी जागरण कहलाता है।
नवरात्र के पहले दिन सुबह संकल्प रूपी कलश की स्थापना की जाती है। यह कलश सुख-समृद्धि और मंगल कामनाओं का प्रतीक है। कलश के साथ ही बालू की वेदी बनाकर या किसी पात्र में जौ बोए जाते हैं। जौ बोने से धन-धान्य की वृद्धि होती है। जौ को सृष्टि के पहले फसल के रूप में भी जाना जाता है। साथ ही मां दुर्गा की मूर्ति को स्थापित कर उसको सजाकर अखंड दीप जलाया जाता है। अंतिम दिन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक मानकर पूजन किया जाता है।
ऋतु संधिकाल यानि बदलते मौसम में रोगाणु के शरीर पर आक्रमण बढ़ जाते हैं। इस मौसम में वात, पित्त और कफ तीनों दोष असंतुलित होने से इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ जाता है। इससे शरीर में बीमारियां बढ़ने लगती हैं। शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए नवरात्र में नौ दिन जप, उपवास, साफ-सफाई, भाव शुद्धि और ध्यान करते हैं। हवन करने से वातावरण में फैले रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। नए कार्यों के आरंभ के लिए ये दिन बड़े शुभ माने जाते हैं।
नवरात्र में देवी के 51 शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर मेले लगते हैं। यूं तो यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन गुजरात और बंगाल में इसे भव्य और विशाल रूप दिया जाता है। गुजरात में देवी मां को प्रसन्न करने के लिए आरती से पहले गरबा किया जाता है और आरती के बाद डांडिया खेला जाता है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्य त्योहार है। यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों में सजाकर सामूहिक पूजा की जाती है। नवरात्र की पहली रात से ही रामलीलाओं का आयोजन शुरू हो जाता है। यह दशहरे के दिन रावण दहन के साथ पूर्ण होता है। नवरात्र के अगले दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। मां दुर्गा की आराधना से दुख, कष्ट, संकट और भय का नाश होता है। इंसान ज्ञान, आनंद, करुणा और प्रेम से भर जाता है।