विजयादशमी पर इस देवी और वृक्ष की होगी पूजा, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

शारदीय नवरात्रि में महानवमी के हवन के बाद दुर्गा पूजा अपने समापन की ओर अग्रसर होता है।

Update: 2020-10-23 11:04 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| शारदीय नवरात्रि में महानवमी के हवन के बाद दुर्गा पूजा अपने समापन की ओर अग्रसर होता है। नवरात्रि की दशमी ति​थि यानी विजयादशमी या दशहरा को विशेष पूजा का आयोजन होता है। विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता, शमी वृक्ष और शस्त्र पूजा की जाती है। इस वर्ष विजयादशमी 25 अक्टूबर दिन रविवार को है। इस दिन महानवमी और दशमी दोनों ही हैं। दशमी के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान श्रीराम ने रावण वध कर लंका विजय की थी, इसलिए दशमी को विजयादशमी के रुप में मनाते हैं। विजयादशमी या दशहरा को असत्य पर सत्य की जीत के रुप में देखा जाता है। आइए जानते हैं कि विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता, शमी वृक्ष और शस्त्र पूजा का मुहूर्त और महत्व क्या है।

25 अक्टूबर को विजयादशमी या दशहरा

दशमी तिथि का प्रारम्भ 25 अक्टूबर को सुबह 07:41 बजे से हो रहा है, जो 26 अक्टूबर 26 को सुबह 09:00 बजे तक है। 25 अक्टूबर को दशमी तिथि का अपराह्नकाल में पूर्ण व्याप्ति है, इसलिए 25 अक्टूबर को दशहरा या विजयादशमी होगा।

दशहरा या विजयादशमी का पूजा मुहूर्त

विजयादशमी के दिन आपको पूजा के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 01:12 से दोपहर 03:27 बजे तक है। इस अवधि में आपको देवी अपराजिता और शमी वृक्ष की पूजा करनी चाहिए।

दशहरा: शस्त्र पूजा मुहूर्त

दशहरा के दिन शस्त्र पूजा के लिए विजय मुहूर्त उत्तम माना जाता है। इस मुहूर्त में किए गए कार्य में सफलता अवश्य प्राप्त होती है। विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजा के लिए विजय मुहूर्त दोपहर 13:57 बजे से दोपहर 14:42 बजे तक है। इस समयकाल में आपको अपने शस्त्रों की पूजा करनी चाहिए।

अपराजिता देवी की पूजा विधि

अक्षत्, फूल, दीपक, गंध, धूप आदि के सा​थ अष्टदल पर अपराजिता देवी की मूर्ति स्थापना करें। ओम अपराजितायै नमः मंत्र का उच्चारण कर देवी की स्थापना की जाती है। देवी के दाएं भाग में जया तथा बाएं भाग में विजया की स्थापना होगी। फिर आवाहन पूजा करें।

प्रार्थना मंत्र

चारुणा मुख पद्मेन विचित्रकनकोज्वला।

जया देवि भवे भक्ता सर्व कामान् ददातु मे।।

काञ्चनेन विचित्रेण केयूरेण विभूषिता।

जयप्रदा महामाया शिवाभावितमानसा।।

विजया च महाभागा ददातु विजयं मम।

हारेण सुविचित्रेण भास्वत्कनकमेखला।

अपराजिता रुद्ररता करोतु विजयं मम।।

शमी की पूजा

शमी पूजा विशेष कर क्षत्रिय करते हैं। शमी वृक्ष की पूजा दशहरा वाले दिन प्रदोष काल में की जाती है। कहा जाता है कि पांडवों ने महाभारत के युद्ध के समय अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के वृक्ष पर छिपाए थे, जिससे उन्हें युद्ध में विजय मिली। हालांकि शमी को दृढ़ता तथा तेजस्विता का प्रतीक माना जाता है। उसमें अन्य वृक्षों की तुलना में अग्नि तत्व ज्यादा होता है। हम भी शमी की तरह ही तेजस्वी तथा दृढ़ हों, इसलिए इसकी पूजा की जाती है।



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