इस दिन है कालाष्टमी व्रत, जानें पूजा विधि एवं महत्व

हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस प्रकार, फाल्गुन माह में कालाष्टमी 23 फरवरी को है। इस दिन भगवान शिव जी के क्रुद्ध स्वरूप काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है।

Update: 2022-02-21 02:48 GMT

हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस प्रकार, फाल्गुन माह में कालाष्टमी 23 फरवरी को है। इस दिन भगवान शिव जी के क्रुद्ध स्वरूप काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है। अघोरी समाज के लोग कालाष्टमी को उत्स्व की तरह मनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तांत्रिक साधक जादू-टोने की सिद्धि गुप्त नवरात्रि के अलावा कालाष्टमी की रात्रि में ही करते हैं। कालरात्रि को तंत्र मंत्र सीखने वाले साधकों की सिद्धि पूरी होती है। धार्मिक मान्यता है कि विधि पूर्वक कालाष्टमी का व्रत करने से व्रती के जीवन से दुःख, दरिद्र, काल और संकट दूर हो जाते हैं। आइए, कालाष्टमी की विधि और महत्व जानते हैं-

कालाष्टमी महत्व

इस दिन शिवालय और मठों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान शिव जी के स्वरूप काल भैरव देव का आह्वान किया जाता है। खासकर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-आराधना की जाती हैं। साथ ही महाभस्म आरती की जाती है। जबकि शिव जी के उपासक अपने घरों में ही उनकी पूजा कर उनसे यश, कीर्ति, सुख और समृद्धि की कामना करते हैं।

कालाष्टमी पूजा विधि

इस दिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद स्नान-ध्यान कर व्रत संकल्प लें। इसके लिए पवित्र जल से आमचन करें। अब सर्वप्रथम सूर्य देव का जलाभिषेक करें। इसके पश्चात भगवान शिव जी की पूजा जथा शक्ति तथा भक्ति के भाव से करें। आप भगवान शिव जी के स्वरूप काल भैरव देव की पूजा पंचामृत, दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें। अंत में आरती अर्चना कर अपनी मनोकामनाएं प्रभु से जरूर कहें। दिन में उपवास रखें। जबकि शाम में आरती अर्चना के बाद फलाहार करें। इसके अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ के बाद व्रत खोलें।


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