27 पत्नियों वाले चंद्रदेव को ससुर ने दिया था ये श्राप, महादेव ने बचाए थे प्राण
प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है. ये व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ और महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के मुताबिक, प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13वें दिन यानी त्रयोदशी पर रखा जाता है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है. सावन का दूसरा प्रदोष व्रत मंगलवार, 9 अगस्त को पड़ रहा है.
प्रदोष व्रत के बारे में कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुण्य मिलता. प्रदोष व्रत को लेकर कई पौराणिक तथ्य सामने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, जब अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा. जब मनुष्य स्वार्थी हो जाएगा और सत्कर्म छोड़ देगा. उस समय जो भी त्रयोदशी का व्रत रखेगा, उस पर शिव की कृपा होगी, उसे मोक्ष मिलेगा.
ससुर श्राप से कुष्ठ रोगी हो गए थे चंद्र देव
चंद्र देव का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से संपन्न हुआ जो कि नक्षत्र हैं. इनमें रोहिणी बहुत खूबसूरत थीं. चंद्र का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख शेष कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से अपना दुख प्रकट किया. दक्ष तो स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे. उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दे दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे. इसके बाद से चन्द्र धीरे-धीरे क्षय रोग से ग्रसित होने लगे. उनकी कलाएं क्षीण होने लगीं. यह देखकर नारदजी ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने को कहा.
इसके बाद चन्द्र और रोहणी दोनों ने भगवान आशुतोष की आराधना की. चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे, तभी भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया. चंद्र मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए. शिव कृपा से चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए. 'प्रदोष व्रत' इसलिए भी किया जाता है कि भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन: जीवन प्रदान किया था.