आइये जानते हैं इन गुरुओं के बारे में।
* देवगुरु बृहस्पति
बृहस्पति को देवताओं के गुरु का दर्जा दिया गया है। वह एक तपस्वी ऋषि थे। इन्हें 'तीक्ष्णशृंग' भी कहा गया है। इन्द्र को पराजित कर इन्होंने उनसे गायों को छुड़ाया था। युद्ध में अजय होने के कारण योद्धा लोग इनकी प्रार्थना करते थे। ये अत्यंत परोपकारी थे जो शुद्धाचारणवाले व्यक्ति को संकटों से छुड़ाते थे। इन्हें गृहपुरोहित भी कहा गया है, इनके बिना यज्ञयाग सफल नहीं होते।
* महर्षि वेदव्यास
प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है। महर्षि के शिष्यों में ऋषि जैमिन, वैशम्पायन, मुनि सुमन्तु शामिल थे। गुरु पूर्णिमा वेदव्यास को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार कहे जाते हैं। महर्षि वेदव्यास ने ही वेदों और 18 पुराणों, महाकाव्य महाभारत की रचना की थी।
* महर्षि वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। महर्षि वाल्मीकि कई तरह के अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कारक माने जाते हैं। भगवान राम और उनके दोनो पुत्र लव-कुश महर्षि वाल्मीकि के शिष्य थे। लव-कुश को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा महर्षि वाल्मीकि ने ही दी थी जिससे महाबलि हनुमान को बंधक बना लिया था।
* दैत्यगुरु शुक्राचार्य
गुरु शुक्राचार्य राक्षसों के देवता माने जाते हैं। उनका असली नाम शुक्र उशनस है। पुराणों के अनुसार, याह दैत्यों के गुरु और पुरोहित थे। गुरु शुक्राचार्य को भगवान शिव ने मृत संजीवनी दिया था ताकि मरने वाले दानव फिर से जीवित हो जाते थे। गुरु शुक्राचार्य ने दानवों के साथ देव पुत्रों को भी शिक्षा दी। देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच इनके शिष्य थे।
* गुरु विश्वामित्र
विश्वामित्र महान भृगु ऋषि के वंशज थे और उनके शिष्यों में राम और लक्ष्मण आते थे। विश्वामित्र ने भगवान राम और लक्ष्मण को कई अस्त्र शस्त्र विद्या तो सिखाई ही अन्य पाठ भी पढ़ाए।