जानकी जी की खोज के लिए वानरों को मिला एक माह का समय
वानरों के झुंड एकत्र होने पर सुग्रीव जी ने सबको समझाया कि माता जानकी का पता लगाना प्रभु श्री राम का काम है और मेरा आप सबसे आग्रह है कि सारे वानर चारो दिशाओं में जाकर चाहे जैसे हो, उनका पता लगा कर एक माह के भीतर लौट आओ. इस अवधि के बीतने के बाद जो बिना पता किए आएगा, वह अपना वध करवाने के लिए तैयार रहे. इसके बाद सुग्रीव ने अंगद, नल, हनुमान प्रधान योद्धाओं को बुला कर दक्षिण दिशा की ओर जाकर सीता जी का पता लगाने की आज्ञा दी. उन्होंने कहा कि आप सबको मन, वचन और कर्म से सिर्फ यही एक काम सफलता पूर्वक करना है. उन्होंने बताया कि सूर्य को पीठ से और अग्नि का सामने से सेवन करना चाहिए किंतु स्वामी की सेवा तो छल छोड़कर हर तरह से करना चाहिए.
हनुमान जी को प्रभु ने अपनी अंगूठी उतार कर दी
इतना कहते ही सब लोग प्रभु को प्रणाम और आशीर्वाद लेकर चल दिए तो श्री राम ने हनुमान जी को अपने पास बुलाया, उनके सिर पर हाथ का स्पर्श करते हुए अपनी अंगूठी उतार कर देते हुए कहा, तुम सीता को हर तरह से समझा कर ढाढस बंधाना कि मैं शीघ्र ही उन्हें लेने आऊंगा. सब वानर वन, नदी, तालाब, पर्वत आदि को लांघते हुए सीता की खोज कर रहे थे. वे अपने शरीर को भी भूल कर इस काम में लगे थे. रास्ते में यदि कहीं किसी राक्षस से भेंट हो जाती तो एक चपत में ही उसके प्राण ले लेते. कोई मुनि मिल जाता तो उन्हें रोक कर सीता माता के बारे में पूछते.
गुफा के अंदर उपवन में दिखी तपोमूर्ति स्त्री
जंगल से निकलते हुए अचानक वानरों को प्यास लगी, वे सब व्याकुल हो उठे किंतु दूर-दूर तक कहीं पानी नहीं दिख रहा था. ऐसा लगा कि अब यदि तुरंत पानी न मिला तो सब प्यास से मर जाएंगे. ऐसे में हनुमान जी ने एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर चढ़ कर देखा कि पृथ्वी के अंदर एक गुफा है जिसके ऊपर चकवे, बगुले और हंस उड़ रहे हैं, इतना ही नहीं बहुत से पक्षी उसमें प्रवेश कर रहे हैं. पवन पुत्र हनुमान भी पर्वत से नीचे उतर आए और सबको लेकर गुफा में प्रवेश कर गए. अंदर जाकर उन्होंने एक बहुत ही सुंदर उपवन और तालाब देखा जिसमें बहुत से कमल खिले हुए हैं. वहीं पर एक सुंदर सा मंदिर है जिसमें एक तपोमूर्ति स्त्री बैठी है. दूर से ही सबने उन्हें सिर नवाया और उनके पूछने पर सारा किस्सा सुनाया. इस पर उन्होंने तालाब में स्नान कर सुंदर मीठे फल खाने की आज्ञा दी तो सबने आनंद के साथ फल खाकर जलपान किया.