शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा,मां लक्ष्मी को खुश के लिए बेहद खास
आज शरद पूर्णिमा है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज शरद पूर्णिमा है. कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी धन की वर्षा करती हैं. मान्यता है कि इस दिन रात्रि के समय मां धरती लोक पर विचरण करती हैं. शास्त्रों के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए इसे मां लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस भी माना जाता है. शरद पूर्णिमा पर रात्रि के समय मां लक्ष्मी की पूजा करने का प्रावधान है. यह दिन मां लक्ष्मी को खुश के लिए बेहद खास होता है. इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें अमृत की बारिश करती हैं, इसीलिए लोग खीर बनाकर इस दिन चन्द्रमा की रोशनी के नीचे रखते हैं. आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा के बारे में.
शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा
शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत पुराने समय की बात है एक नगर में एक सेठ (साहूकार) को दो बेटियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है.
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ. जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे को छू गया.
बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया