देव सूर्य मंदिर काफी पौराणिक व ऐतिहासिक है. काले पत्थरों को तरासकर बनाए गए इस मंदिर की शिल्पकला देखने लायक है. कहते हैं कि देव मंदिर में दर्शन करने से ही सूर्यदेव श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. देव सूर्य मंदिर करीब 100 फीट ऊंचा है. मान्यता है कि इस सूर्य मंदिर का निर्माण त्रेता युग में भगवान विश्वकर्मा ने खुद किया था और जो भक्त यहां भगवान सूर्य की आराधना मन से करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है. आपको बता दें कि यहां के मंदिर में भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विरामजामन हैं. भगवान सूर्य यहां उदय काल में ब्रह्मा, मध्याह्न में विष्णु व संध्या काल में महेश के रूप में दर्शन देते हैं.
राजा एल ने करवाया था मंदिर का निर्माण
मंदिर के निर्माण के बारे में मंदिर में लगे शिलालेख से ही पता चलता है. शिलालेख में लिखा है कि त्रेतायुग में राजा एल ने इसका निर्माण कराया था. वह कुष्ठ रोग से ग्रसित थे. कहा जाता है कि राजा एक बार जंगल में शिकार खेलते हुए देव पहुंचे थे. शिकार खेलने के दौरान राजा को प्यास लगी. जैसे ही उन्होंने देव स्थित तालाब का जल ग्रहण किया तो राजा के हाथ में जहां-जहां जल का स्पर्श हुआ वहां का कुष्ठ रोग ठीक हो गया. राजा उस तालाब में कूद गए जिस कारण उनके शरीर का कुष्ठ रोग ठीक हो गया. रात में जब राजा विश्राम कर रहे थे तभी सपना आया कि जिस तालाब में उन्होंने स्नान किया है उस तालाब में भगवान सूर्य की तीन स्वरूपी प्रतिमा दबी पड़ी है. राजा ने जब तालाब खुदवाया तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में तीन प्रतिमाएं मिलीं. प्रतिमाओं के लिए मंदिर का निर्माण कराकर उन्हें वहां स्थापित किया गया जो आज देव सूर्य मंदिर के रूप में देशभर में प्रसिद्ध है.
पश्चिमाभिमुख है देव सूर्य मंदिर
देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिमाभिमुख है. कहा जाता है कि औरंगजेब अपनी शासनकाल में देश के मंदिरों को तोड़ते हुए देव पहुंचा था. जब वह सूर्य मंदिर को तोड़ने लगा, तो यहां के पुजारियों ने मना किया. तब औरंगजेब ने कहा कि अगर सूर्यमंदिर में कुछ सत्यता है तो रातभर का समय देता हूं अगर मंदिर का द्वार पूर्व से पश्चिम हो जाएगा, तो हम मंदिर को छोड़ देंगे. ऐसा ही हुआ, रात में तेज गर्जना के साथ मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो गया. तब औरंगजेब मंदिर को नहीं तोड़ सका.
देव में माता अदिति ने की थी सूर्य पूजा
कहा जाता है कि प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गए थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देव यूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी. प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र आदित्य भगवान हुए जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाया