सूफीवाद: धार्मिक सौहार्द बढ़ाने का जरिया

धार्मिक सौहार्द सूफीवाद से

Update: 2022-09-03 10:21 GMT
लेखक: पप्पू फरिश्ता
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र, विभिन्न संस्कृति, नस्लों व धर्मों का देश है। यह विविधता ही हमारे देश की शान व पहचान है जो इसे महान बनाती है। वर्तमान समय में हमारे देश की 'अनेकता में एकता' व सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखना एक चुनौती है। इसमें सूफीवाद जो ऐतिहासिक रूप से मुस्लिमों के बड़े वर्ग द्वारा पालन किया जाता रहा है व जो सहनशीलता व सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

भारत जैसे देश में जहां बहुसांस्कृतिक, बहुभाषी, बहुधार्मिक, बहुजातीय विविधता है वहां सूफीवाद लोगों के बीच बातचीत बढ़ाने, विचारों का आदान-प्रदान करने का महत्वपूर्ण जरिया बन सकता है। सूफीवाद ने ऐतिहासिक रूप से विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव बढ़ाने का काम किया है।

संत कबीर दास
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।

कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर॥


सूफीवाद हमारे देश में प्रेम, शांति, सहनशीलता, भाईचारा व संयम का प्रतीक, रूपक रहा है सूफीवाद एक विश्वसनीय रूप से जीने की कला सिखाता है जो धार्मिक कट्टरता का विरोध करता है।

सूफीवाद अनेक देशों की आंतरिक व अंतरराष्ट्रीय नीति का अभिन्न अंग बन चुका है जैसे इंडोनेशिया, उत्तरी अफ्रीका के कई देश व खाड़ी के देश। वर्तमान समय में जब विश्व स्तर पर धार्मिक कट्टरता व असहिष्णुता बढ़ रही है तब सूफीवाद एक नए सहिष्णु खुलेपन व प्रबुद्ध इस्लाम की छवि प्रस्तुत कर सकता है सूफीवाद के प्रवर्तको ने भी इसे रबिय, अलदाविया, अल जुनैद व बायाजिद बस्तानी ने शांति व सहनशीलता को बढ़ावा देने व आत्मिक उत्थान पर बल दिया है।

सूफी संतों ने समाज सेवा तथा नैतिकता पर बल दिया। बरनी का कथन हैं कि निजामुद्दीन औलिया के प्रभाव के फलस्वरूप ही जनता के सामाजिक तथा नैतिक जीवन में बड़ा परिवर्तन हुआ। सूफी संत राजनीति से अलग रहे, उन्होंने लोगों से स्पष्ट कहा कि इस अन्धकारपूर्ण युग में प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य हैं। सूफी ईश्वर की एकात्म छवि में विश्वास करते हैं।
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इस जहां में ईश्वर के अंदर ही सब कुछ सिमटा हुआ है, बाहर जो भी है वो उसका प्रतिबिंब मात्र है। एक प्राणी अपना सब कुछ फ़ना करके ही ख़ुदा को पा सकता है। साधारण जीवन हमारे भीतर सात्विकता का विकास करता है, जिससे की हम सांसारिकता से अलगाव करके भक्ति की तरफ बढ़ चलते हैं. जिस तरह एक प्रेमी अपने दूसरे प्रेमी को स्नेह करता है। उसी तरह हमें भी ख़ुदा में मिल कर ख़ुदा की इबादत करनी चाहिए।
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