इस मंदिर की महिमा ऐसी, यहाँ लकवा के मरीज भी हो जाते हैं चंगे

Update: 2023-08-26 16:53 GMT
धर्म अध्यात्म: एक ऐसा प्राचीन मंदिर जो महाभारत काल के समय का माना जाता है. यह मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के गांव माता जी की पांडोली में स्थित है, जो जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर है. इस शक्तिपीठ को झातला माता के नाम से जाना जाता है. पांडोली गांव के तालाब की पाल पर बना यह मंदिर लोक आस्था का केंद्र है.
जन श्रुति है कि यहां सैंकड़ो वर्षा पूर्व एक विशाल वट वृक्ष था जिसके नीचे देवी की प्रतिमा थी. इसलिए इसे वटयक्षीणी देवी का मंदिर भी कहते हैं. कालांतर में इस स्थान पर विक्रम संवत 1215 के लगभग एक विशाल मंदिर का निर्माण किया गया जो आज भी स्थित है. अपने वर्तमान स्वरूप में इस मंदिर के गर्भ गृह में पांच देवियों की प्रतिमा स्थित है.
लकवा ग्रस्त मरीजों का उपचार
आमतौर पर झातला माता को लकवा ग्रस्त रोगियों की देवी भी कहा जाता है. मान्यता है कि जो लकवा ग्रस्त रोगी चिकित्सकों के द्वारा भी सही नहीं होते हैं. वह माता के दरबार में सही होकर अपने घर जाते हैं. जन श्रुति के अनुसार लकवा ग्रस्त रोगियों को मंदिर में रात्रि विश्राम करने के साथ ही वहां स्थित वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर लोगों को बीमारी से राहत मिलती है. वहीं माता के दरबार में मुर्गे का उतारा कर मुर्गे को मंदिर परिसर में ही छोड़ देते हैं.
125 साल गुर्जर समाज कर रहा सेवा
इस मंदिर में चैत्र नवरात्रि व अश्विन मास की नवरात्रि के समय यहां विशेष प्रकार के मेलों का आयोजन किया जाता है. नवरात्रि के समय यहां प्रतिदिन लोगों की बहुत ही भीड़ देखने को मिलती है. नवरात्रि के वक्त यहा विशेष रूप से पांच प्रकार की आरती होती है. यहां माताजी की सेवा गुर्जर समाज के एक ही परिवार के द्वारा लगभग 125 वर्ष से की जा रही है.
पन्नाधाय की जन्मस्थली
इतिहास में विख्यात हुई पन्नाधाय का जन्म इसी माताजी की पांडोली में गुर्जर समाज के एक परिवार में हुआ था, जिनका विवाह राजसमंद जिले के कमेरी गांव, में सूरजमल गुर्जर से हुआ था. यह वही पन्नाधाय हैं, जिसने मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह जी को बनवीर के हाथों मौत के घाट उतारने से बचाया था और अपने पुत्र चंदन की बलि दी थी.
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