होली पर इस साल बन रहा है विशेष संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त

इस साल होली पर विशेष योग का निर्माण हो रहा है, जिससे होली का महत्व बढ़ रहा है।

Update: 2021-03-24 06:01 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | इस साल होली पर विशेष योग का निर्माण हो रहा है, जिससे होली का महत्व बढ़ रहा है। होली हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। इस साल होली के दिन ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन चंद्रमा कन्या राशि में गोचर कर रहा होगा। जबकि मकर राशि में शनि और गुरु विराजमान होंगे। शुक्र और सूर्य मीन राशि में रहेंगे। मंगल और राहु वृषभ राशि, बुध कुंभ राशि और मोक्ष के कारण केतु वृश्चिक राशि में विराजमान होंगे।

शुभ मुहूर्त
फाल्गुन पूर्णिमा 2021
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- मार्च 28, 2021 को 03:27 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त- मार्च 29, 2021 को 00:17 बजे
होलिका दहन 2021
होलिका दहन मुहूर्त- 18:37 से 20:56
अवधि- 02 घंटे 20 मिनट
होली वसंत ऋतु में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय पर्व/त्योहार है। वस्तुतः यह रंगों का त्योहार है। यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहला दिन होलिका दहन किया जाता है उसके दूसरे दिन रंग खेला जाता है। फाल्गुन मास में मनाए जाने के कारण होली को फाल्गुनी भी कहते हैं।
होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है। इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है। होली के रंगों की तरह होली को मनाने के ढंग में विभिन्न है। होली उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है। देश के जिन प्रदेशो में होलाष्टक से जुड़ी मान्यताओं को नहीं माना जाता है। उन सभी प्रदेशों में होलाष्टक से होलिका दहन के मध्य अवधि में शुभ कार्य करने बन्द नहीं किये जाते है।
होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है. जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है. जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है. होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है.
सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है। इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऎसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूट्कर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है। 
होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है. इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बडा ढेर बन जाता है. व इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है. अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है. बच्चे और बडे इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते है.
होलाष्टक से मिलती जुलती होली की एक परम्परा राजस्थान के बीकानेर में देखने में आती है। पंजाब की तरह यहां भी होली की शुरुआत होली से आठ दिन पहले हो जाती है। फाल्गुन मास की सप्तमी तिथि से ही होली शुरु हो जाती है, जो धूलैण्डी तक रहती है। राजस्थान के बीकानेर की यह होली भी अंदर मस्ती, उल्लास के साथ साथ विषेश अंदाज समेटे हुए हैं। इस होली का प्रारम्भ भी होलष्टक में गडने वाले डंडे के समान ही चौक में खम्भ पूजने के साथ होता है।
होलाष्टक की पौराणिक मान्यता
फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है। सर्दियां अलविदा कहने लगती है और गर्मियों का आगमन होने लगता है। साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है। होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी।
होलिका में गाय के गोबर से बने उपले की माला बनाई जाती है उस माला में छोटे-छोटे सात उपले होते हैं। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका उद्देश्य यह होता है कि होली के साथ घर में रहने वाली बुरी नज़र भी जल जाती है और घर में सुख समृद्धि आने लगती है। लकड़ियों व उपलों से बनी इस होलिका का मध्याह्न से ही विधिवत पूजा प्रारम्भ होने लगती है। यही नहीं घरों में जो भी बने पकवान बनता है होलिका में उसका भोग लगाया जाता है। शाम तक शुभ मुहूर्त पर होलिका का दहन किया जाता है। इस होलिका में नई फसल की गेहूं की बालियों और चने के झंगरी को भी भूना जाता है और उसको खाया भी जाता है। होलिका का दहन हमें समाज की व्याप्त बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का प्रतीक है। यह दिन होली का प्रथम दिन भी कहलाता है।


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