भगवान् श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि पूरी में रथ यात्रा का शुभारम्भ होने जा रहा है जो की हजारो सालो से चली आ रही एक ऐसी परम्परा है,जिसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। तो आइये जानते है इससे जुडी कुछ महत्वपूर्ण बातो..
* इस बात पर शायद ही आज तक किसी ने गौर किया हो कि भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के दिन बारिश जरूर होती है। आज तक कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि इस दिन बारिश न हुई हो।भगवान की यात्रा का ये उत्सव आषाढ़ शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाया जाता है।
* जब से जगन्नाथ जी रथयात्रा आरंभ हुई है तब से ही राजाओं के वंशज पारंपरिक ढंग से सोने के हत्थे वाली झाडू से भगवान जगन्नाथ जी के रथ के सामने झाडु लगाते हैं। जिसके बाद मंत्रोच्चार एवं जयघोष के साथ रथयात्रा शुरू की जाती है,पर अब पुरे भारत में कोई राजा नही होने की वजह से उनके स्थान पर पूरी में सामान्य तौर एक राजा बनाया जाता है जो की सोने की झाड़ू से मंदिर की सफाई करता है.इसके बाद ही भगवान को मन्दिर निकाला जाता है।
* ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ रास्ते में एक बार अपना पसंदीदा पोड़ा पीठा खाने के लिए जरूर रुकते हैं। ओडिसा में बनने वाली यह मीठा व्यंजन बड़ा ही स्वादिष्ट होता है।
* भारत ही नहीं बल्कि पुरी दुनियाभर में ये एक ऐसा त्यौहार है जहां भगवान खुद ही घूमने निकल जाते हैं।जिनकी रथ यात्रा में भारी संख्या में लोग मौजूद होते हैं, और बड़े आनदं लेते हुए रथ यात्रा में अपनी भागीदारी देते है।
*भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, व सुभद्रा का रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ये लकड़ी हल्की होती है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है। इसके अलावा यह रथ बाकी रथों की तुलना में भी आकार में बड़ा होता है। जगन्नाथ जी की रथ यात्रा बलभद्र और सुभद्रा के रथ के पीछे होती है।